Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : द्वि. श्रावण : २४९२
गृहस्थपणुं दानथी ज शोभे छे

धर्मनी प्रभावना वगेरे माटे दान करवानो प्रसंग आवे त्यां धर्मना
प्रेमी जीवनुं हृदय थनगणाट करतुं उदारताथी ऊछळी जाय के अहो, आवा
उत्तम कार्य माटे जेटलुं धन वपराय तेटलुं सफळ छे. जे धन पोताना हित
माटे काम न आवे ने पापबंधनुं ज कारण थाय–ए धन शा कामनुं? एवा
धनथी धनवानपणुं कोण कहे? साचो धनवान तो ए छे के उदारतापूर्वक
धर्मकार्यमां पोतानी लक्ष्मी वापरे छे.(श्रावकधर्म उपरना प्रवचनमांथी)
मनुष्योनुं गृहस्थपणुं दान वडे ज गुणकारी छे, तथा दानवडे ज आलोक तथा
परलोक बंनेनो उद्योत थाय छे; दान वगरनुं गृहस्थपणुं तो बंने लोकनो ध्वंस करनारुं
छे गृहस्थने सेंकडो प्रकारना दुर्व्यापारथी जे पाप थाय छे तेनो नाश दान वडे ज थाय
छे, ने दान वडे चंद्रसमान उज्वळ यश प्राप्त थाय छे. आ रीते पापनो नाश ने यशनी
प्राप्ति माटे गृहस्थने सत्पात्रदान समान बीजुं कांई नथी. माटे पोतानुं हित चाहनारा
गृहस्थोए दान वडे ज गृहस्थपणुं सफळ करवुं जोईए.
देव–गुरु–शास्त्र तरफना उल्लासथी संसार तरफनो उल्लास घटाडे छे त्यां
दानादिनो शुभभाव आवे छे, एटले गृहस्थे पाप घटाडीने शुभभाव करवो–एवो
उपदेश छे. तुं शुभभाव कर एवो उपदेश व्यवहारमां होय छे. परमार्थमां तो रागनुंय
कर्तृत्व आत्माना स्वभावमां नथी. रागना कणियानुंय कर्तृत्व माने के तेनाथी मोक्षमार्ग
माने तो मिथ्याद्रष्टि छे. एम शुद्धद्रष्टिना वर्णनमां आवे; एवी द्रष्टिपूर्वक रागनी घणी
मंदता धर्मीने होय छे. राग वगरनो स्वभाव द्रष्टिमां ल्ये ने राग घटे नहि एम केम
बने? अहीं कहे छे के जेने दानादिना शुभभावनुंय ठेकाणुं नथी एकला पापभावमां जे
पड्या छे तेनी तो आ लोकमांय शोभा नथी ने परलोकमांय तेने सारी गति मळती
नथी. पापथी बचवा माटे पात्रदान ज उत्तम मार्ग छे. मुनिवरोने तो परिग्रह ज नथी,
एमने तो अशुभ परिणति छेदाई गई छे ने घणी आत्मरमणता वर्ते छे, एमनी तो
शी वात? अहीं तो गृहस्थने माटे उपदेश छे. जेमां अनेक प्रकारना पापना प्रसंग छे
एवा गृहस्थपणामां पापथी बचवा पूजा–दान–स्वाध्याय वगेरे कर्तव्य छे.
तीव्रलोभीप्राणीने संबोधीने कार्तिकस्वामी तो कहे छे के अरे जीव! आ लक्ष्मी चंचळ छे,
एनी ममता तुं छोड, तुं तीव्र लोभथी बीजा माटे