Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : १३ :
(देव–गुरु–शास्त्रना शुभकार्योमां) तो लक्ष्मी नथी वापरतो, परंतु तारा देह माटे
तो वापर! एटली तो ममता घटाड. ए रीते पण लक्ष्मीनी ममता घटाडतां शीखशे
तो क्यारेक शुभ कार्योमां पण लोभ घटाडवानो प्रसंग आवशे. अहीं तो धर्मना
निमित्तो तरफना उल्लासभावथी जे दानादि थाय तेनी ज मुख्य वात छे. जेने धर्मनुं
लक्ष नथी ते कंईक मंदराग वडे दानादि करे तो साधारण पुण्य बांधे, पण अहीं तो
धर्मना लक्ष सहितनां पुण्यनी मुख्यता छे, एटले अधिकारनी शरूआतमां ज
अरिहन्तदेवनी ओळखाणनी वात लीधी हती. शास्त्रमां तो ज्यारे जे प्रकरण
चालतुं होय त्यारे तेनुं विस्तारथी वर्णन करे, ब्रह्मचर्य वखते ब्रह्मचर्यनुं वर्णन करे,
ने दान वखते दाननुं वर्णन करे; मूळभूत सिद्धांत लक्षमां राखीने दरेक कथनना
भाव समजवा जोईए.
लोकोमां तो जेनी पासे घणुं धन होय तेने लोको धनवान कहे छे; परंतु
शास्त्रकार कहे छे के जे लोभी छे एनी पासे गमे तेटलुं धन पड्युं होय तो पण ते
धनवान नथी पण रंक छे, केमके जे धन उदारतापूर्वक सत्कार्यमां वापरवा माटे काम न
आवे, पोतानां हितने माटे काम न आवे ने एकला पापबंधनुं ज कारण थाय ए धन
शा कामनुं? ने एवा धनथी धनवानपणुं कोण माने? साचो धनवान तो ए छे के जे
उदारतापूर्वक पोतानी लक्ष्मीने दानमां वापरे छे. भले लक्ष्मी थोडी होय पण जेनुं हृदय
उदार छे ते धनवान छे. ने लक्ष्मीना ढगला होवा छतां जेनुं हृदय टुंकुं छे–कंजुस छे ते
दारिद्रि छे. एक कहेवत छे के–
रणे चडया रजपूत छूपे नहि.....
दाता छूपे नहि घर मांगण आया...
जेम युद्धमां खांडाना खेलनो प्रसंग आवे त्यां रजपूतनी शूरवीरता छानी रहे
नहि; ए घरना खुणे संताईने बेसी न रहे, एनुं शौर्य ऊछळी जाय, तेम ज्यां दाननो
प्रसंग आवे त्यां उदारदिलना माणसनुं हृदय छानुं न रहे; धर्मना प्रसंगमां प्रभावना
वगेरे माटे दान करवानो प्रसंग आवे त्यां धर्मना प्रेमी जीवनुं हृदय थनगणाट करतुं
उदारताथी ऊछळी जाय; ए छटकवाना बहानां न काढे, के एने पराणे पराणे कहेवुं न
पडे, पण पोताना ज उत्साहथी ते दानादि करे के अहो! आवा उत्तम कार्यमां जेटलुं दान
करुं तेटलुं ओछुं छे. मारी जे लक्ष्मी आवा कार्यमां वपराय ते सफळ छे. आ रीते श्रावक
दानवडे पोतानुं गृहस्थपणुं शोभावे छे.