Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : द्वि. श्रावण : २४९२
प र म शां ति दा ता री
अध्यात्मभावना
आत्मधर्मनी सहेली लेखमाळा
लेख नं. ३९) (अंक २३७A थी चालु
भगवानश्री पूज्यपादस्वामीरचित ‘समाधिशतक’ उपर पू. कानजीस्वामीनां
अध्यात्मभावनाभरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
(वीर सं. २४८२ अषाड वद–छठ्ठ–सातम समाधिशतक गा. ७१)
भेदविज्ञानवडे आत्माने समस्त परद्रव्योथी भिन्न जाणीने तेमां जे एकाग्रता करे
छे तेने ज नियमथी मुक्ति थाय छे, अने तेमां जे एकाग्रता नथी करतो तेने मुक्ति थती
नथी–एम हवे कहे छे–
मुक्तिरेकान्तिकी तस्य चिते यस्याचला धृतिः।
तस्य नैकान्तिकी मुक्तिर्यंस्य नास्त्यचला धृतिः।।७१।।
चैतन्यस्वरूपमां जे अचलपणे एकाग्रता करे छे तेने ज नियमथी–एकांत मुक्ति
थाय छे, ने ए सिवाय व्यवहारमां जे एकाग्रता करे छे तेने मुक्ति थती नथी, आवो
अनेकान्त छे. आ रीते शुद्धोपयोगथी ज मुक्ति थाय छे, शुभरागथी कोईने कदी मुक्ति
थती नथी.
जुओ, आ मुक्तिनो नियम! सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रवडे जरूर मुक्ति थाय छे.
ए सिवाय पंच महाव्रतादिनो शुभ राग ते कांई मुक्तिनुं कारण नथी. ज्यां शुद्ध
रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग होय त्यां दिगंबरपणुं वगेरे पण जरूर होय छे, ने त्यां जरूर मुक्ति
थाय छे. पण ज्यां शुद्धरत्नत्रय नथी त्यां मुक्ति थती ज नथी. आ रीते चैतन्यस्वरूपमां
एकाग्रतारूप सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते नियमथी एकांतपणे–मोक्षनुं कारण छे.
पहेलां तो शरीरादिथी भिन्न चैतन्यस्वरूपनुं ज्ञान कर्युं होय–तेनो द्रढ निर्णय
कर्यो होय तेने ज तेमां एकाग्रता थई शके. चैतन्यराजाने जाणीने तेनी सेवा (श्रद्धा–
ज्ञान–एकाग्रता) करवाथी जरूर मोक्षसुखनी प्राप्ति थाय छे. अहीं तो ‘एकांतिकी
मुक्ति’ कहीने मोक्षनो