: १६ : आत्मधर्म : द्वि. श्रावण : २४९२
अहीं मुख्यपणे मुनिने उद्देशीने कथन छे. पण बधाए पोतानी भूमिका प्रमाणे समजवुं.
एकान्तमां बेसीने आत्माना विचार करवा पण जे नवरो न थाय ने चोवीसे कलाक
बहारनी प्रवृत्तिमां रच्योपच्यो रहे–तो ते आत्मानो अनुभव कई रीते करशे?
सम्यग्दर्शन प्रगट करवा माटे पण बे घडी जगतथी जुदो पडी, अंतरमां एकला चिदानंद
तत्त्वने लक्षगत करी स्वानुभवनो प्रयत्न करे, त्यारे सम्यग्दर्शन थाय छे. लोकनो संग
ने मोटाई जेने रुचता होय, असंग चैतन्यने साधवामां तेना परिणाम कई रीते
वळशे? भाई, लोकसंज्ञाए आत्मा पमाय तेम नथी. अने सम्यग्दर्शन पछी मुनिने पण
जेटलो लोकसंसर्ग थाय तेटली मननी अस्थिरता थाय छे ने केवळज्ञानने रोके छे.
स्वभाव तरफ वळवा माटे ने तेमां लीन थवा माटे कहे छे के लोकोना परिचयथी मननी
व्यग्रता थशे, माटे लोकसंग छोडीने तारा स्वरूपमां ज तुं तत्पर था. तारो चैतन्यलोक
तो तारामां छे, तेनुं अवलोकन कर.
अहो, ऊंडी ऊंडी आ चैतन्यनिधि, तेने प्राप्त करीने धर्मात्मा एकलो एकलो
अंतरमां गुप्तपणे तेने भोगवे छे. धर्मात्माना अंतरना अनुभव बहारथी देखाय नहि.
अरे, जगतना लोकोने देखाडवानुं शुं काम छे? धर्मात्मानो अंदरनो अलौकिक अनुभव
अंदरमां ज समाय छे. नियमसारमां कहे छे के–जेम कोई माणस निधिने पामीने
पोताना वतनमां रही तेना फळने भोगवे छे तेम ज्ञानी परजनोना समूहने छोडीने
ज्ञाननिधिने भोगवे छे. लोकोमां कोईने निधान मळे तो अत्यंत गुप्तपणे रहीने तेने
भोगवे छे जेथी कोई लई न जाय. तेम गुरुप्रसादथी पोताना सहज ज्ञाननिधानने
पामीने ज्ञानी, स्वरूपना अजाण एवा परजनोना समूहने ध्यानमां विघ्ननुं कारण
समजीने छोडे छे. ए रीते ज्ञाननी रक्षा करे छे ने स्वघरमां गुप्तपणे रहीने ध्यानगूफामां
बेठोबेठो पोते एकलो पोताना आनंदनिधानने भोगवे छे.
समयसारनी ४९मी गाथानी टीकामां श्री जयसेनाचार्य कहे छे के ‘अनंत ज्ञान–
दर्शन–सुख–वीर्यस्वरूप जे शुद्धात्मा......ते दुर्लभ छे, ते अपूर्व छे ने ते ज उपादेय छे
एम समजीने, शुद्धात्मानी निर्विकल्प समाधिमां उत्पन्न थता सुखामृतरसनी अनुभूति
स्वरूप.....ऊंडी गिरिगूफामां बेसीने तेनुं ध्यान करवुं.
[अनंत ज्ञानदर्शनसुखवीर्यश्च यः स एव शुद्धात्मा दुर्लभः स एवापूर्वः
सचैवोपादेय इति मत्वा, निर्विकल्प शुद्धात्मसमाधिसंजात
सुखामृतरसानुभूतिलक्षणे गिरि गुहागह्वरे स्थित्वा सर्बतात्पर्येण ध्यातव्य।]
बहारथी जंगलमां जईने बेसे ने अंदर हजी चैतन्यनी अनुभूति शुं ते ओळखे
पण नहि तो बहारनी गिरिगूफामांथी कांई शांति मली जाय तेम नथी. माटे कहे छे के
भाई, तारा अंतरमां शुद्धात्मानी अनुभूतिस्वरूप जे ऊंडी ऊंडी गिरिगूफा–तेमां जईने
शुद्धात्मानुं ध्यान कर.