Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : १७ :
चैतन्यनी गिरिगूफा ज शरणरूप छे. लौकिकमां पण सिंह वगेरेना भयथी बचवा
गूफानुं शरण ल्ये छे. जुओ, सती अंजना उपर कलंक आव्युं ने जंगलमां गई त्यारे
चालतां चालतां थाकी जाय छे, त्यारे तेनी वसंत सखी तेने कहे छे के हे देवी! बहारमां
हिंसकपशुओनो भय छे माटे नजीकमां गूफा छे–तेनुं शरण ले. आम विचारी ज्यां
‘नजीकनी’ गूफामां प्रवेश करे छे त्यां तो ध्यानमां बेठेला एक मुनि दीठा. मुनिने देखतां
ज अंजनाना आनंदनो पार न रह्यो. अहो! आवा जंगलमां महामुनिना दर्शन थया....
जाणे पिता मळ्‌या.....ने जगतना दुःख भूलाई गया. तेम संसारना दुःखथी थाकेला
जीवने बाह्यवृत्तिमां तो राग–द्वेष ने कषायोनी आकुळता छे, भय छे; ज्ञानी कहे छे के हे
भव्य! तुं अंतर्मुख था.....ने तारी चैतन्यगूफामां शरण ले; ए चैतन्यगूफा दूर नथी पण
नजीक ज छे. पछी ज्यां ध्यानवडे अंतरनी चैतन्यगूफामां प्रवेश कर्यो त्यां तो महा
आनंदरूप चैतन्यभगवानना दर्शन थया.....
चार अक्षरनुं मारुं नाम हुं एक महापुरुष तीर्थंकर भगवानने शोधी काढो.
हास्यमां एनो एक भाग छे पण शोकमां नथी. मंदारगिरि
आ चार
नगरीमां रहेला एक
तीर्थंकरने शोधी
काढो.
(–कमलेश जैन. नं. १प२)
श्रावण मासना मंगल दिवसो
सुद २ सुमतिनाथ–गर्भकल्याणक............ (विनितानगरी)
सुद ७ (मोक्षसप्तमी) पार्श्वनाथ–मोक्षकल्याणक..... (सम्मेदशिखर)
सुद १प श्रेयांसनाथ–मोक्षकल्याणक............. (सम्मेदशिखर)
सुद १प (रक्षापूर्व) अंकपनादि ७०० मुनिनी रक्षा..... (हस्तिनापुर)
वद २
वासुपूज्य–केवळज्ञान वगेरे......... (चंपापुर–मंदारगिरि)
वद ७ शांतिनाथ–गर्भकल्याणक................. (हस्तिनापुर)