Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 21 of 57

background image
: १८ : आत्मधर्म : द्वि. श्रावण : २४९२
तेमना छेल्ला दस अवतारनी कथा
(महा पुराणना आधारे ले ब्र. हरिलाल जैन: लेखांक पांचमो)
सोनगढ–जिनमंदिरमां एक चित्रमां, ऋषभदेव भगवाननो आत्मा पूर्वे सातमा
भवे भोगभूमिमां प्रीतिंकर मुनिराजना उपदेशथी सम्यग्दर्शन पामे छे–एनुं द्रश्य छे;
तेना अनुसंधानमां ऋषभदेव भगवानना छेल्ला दस अवतारोनुं आ वर्णन चाले छे.
अगाउना चार लेखोमां प्रसिद्ध थयेल कथानो टू्रंक सार आ प्रमाणे छे: ऋषभदेव
भगवाननो जीव पूर्वे दसमा भवे महाबल राजा हतो. अने त्यां स्वयंबुद्धमंत्रीना
उपदेशथी तेने जैनधर्मनो प्रेम थयो हतो; त्यार पछी (नवमा भवे) ते स्वर्गनो
‘ललितांग’ देव थयो अने त्यां ‘स्वयंप्रभा’ देवी साथे तेने संबंध थयो. त्यारपछी
(आठमा भवे) ते ललितांग अने स्वयंप्रभा अनुक्रमे वज्रजंघराजा अने श्रीमती राणी
थया, ने मुनिवरोने आहारदान करीने भोगभूमिमां जुगलीया–दंपती तरीके अवतर्या.
भोगभूमिना आ (सातमा) भवमां प्रीतिंकर मुनिराजना परम अनुग्रहथी तेओ बंने
सम्यग्दर्शन पाम्या. भोगभूमिनुं आयुष्य पूरुं थतां तेओ बंने ईशानस्वर्गमां उपज्या.
त्यार पछीनी तेमनी कथा हवे आगळ चाले छे........
(प) ऋषभदेवनो पूर्वनो छठ्ठो भव: श्रीधरदेव
भोगभूमिनुं आयुष्य पूर्ण थता आपणा चरित्रनायक ऋषभदेवनो जीव
ईशानस्वर्गना श्रीप्रभ–विमानमां श्रीधर नामनो देव थयो; अने आर्या–श्रीमतीनो
(श्रेयांसकुमारनो जीव पण सम्यग्दर्शनना प्रभावथी स्त्रीपर्यायनो छेद करीने ते ज
ईशानस्वर्गना स्वयंप्रभ–