: द्वि. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : १९ :
विमानमां स्वयंप्रभ नामनो देव थयो. सिंह, नोळियो, वांदरो अने भूंड ए चारेना
जीवो पण भोगभूमिनुं आयुष्य पूर्ण करीने ते ईशानस्वर्गमां ज महान ऋद्धिना धारक
देवो थया; तेमनां नाम–चित्रांगद, मणिकुंडल, मनोहर अने मनोरथ. (सिंह, नोळियो,
वांदरो ने भूंड–आ चारे जीवो आगळ जतां ऋषभदेवनी साथे रहेशे ने तेमनी साथे
मोक्ष पामशे. वानरनो जीव तेमनो गणधर थशे.) महान ऋद्धिधारक श्रीधरदेव पोताना
विमानमां जिनपूजा, तीर्थंकरोना कल्याणक वगेरे अनेक उत्सव करतो हतो, अने
सुखभोगनी सामग्रीथी प्रसन्नचित्त रहेतो हतो.
आगामी काळमां जे तीर्थंकर थनार छे एवा ते श्रीधरदेवे एक दिवस
अवधिज्ञाननो प्रयोग करतां तेने मालुम पड्युं के अमारा गुरु श्री प्रीतिंकर मुनिराज
हाल विदेहक्षेत्रमां श्रीप्रभ पर्वत उपर बिराजमान छे अने तेमने केवळज्ञान प्रगट थयुं
छे. अहो, संसारना सर्वे जीवो उपर करुणा करनार, अने भोगभूमिमां आवीने परम
अनुग्रहपूर्वक अमने सम्यक्त्व पमाडनार आ प्रीतिंकर मुनिराज अमारा महान
उपकारी छे. तेओ आज केवळज्ञान पामीने सर्वज्ञ थया, अरिहंत थया; धन्य एमनो
अवतार! अमे पण आत्मानी साधना पूर्ण करीने क्यारे केवळज्ञान पामीए!! आम
अत्यंत भक्तिपूर्वक श्रीधरदेवे प्रीतिंकर केवळीने नमस्कार कर्या; अने तेमनी पूजा करवा
माटे तथा केवळज्ञाननो उत्सव करवा माटे स्वर्गनी दैवी सामग्री लईने तेमनी सन्मुख
गयो. श्रीप्रभ पर्वत उपर जईने घणी भक्तिथी सर्वज्ञ–प्रीतिंकरमहाराजनी पूजा करी,
नमस्कार कर्या, तथा तेमनी दिव्यवाणीमां धर्मनुं स्वरूप सांभळ्युं. अने पछी नीचे
प्रमाणे पोताना मननी वात पूछी:–
(ऋषभदेव भगवाननो जीव श्रीधरदेव प्रीतिंकर केवळीने पूछे छे–)
हे प्रभो! महाबलराजाना मारा भवमां मारे चार मंत्रीओ हता, तेमां एक आप
(स्वयंबुद्धमंत्री) सम्यग्द्रष्टि हता ने आपे मने जैनधर्मनो बोध आप्यो हतो; बीजा त्रण
मंत्रीओ मिथ्याद्रष्टि हता, तेओ अत्यारे कई गतिमां ऊपज्या छे! ने क्यां छे?
सर्वज्ञदेव पोताना वचनकिरणोवडे अज्ञानअंधकार दूर करतां कहेवा लाग्या–हे
भव्य! ज्यारे महाबलनुं शरीर छोडीने तुं स्वर्गमां चाल्यो गयो त्यारे में
(स्वयंबुद्धमंत्रीए) तो वैराग्यथी रत्नत्रय प्रगट करीने जिनदीक्षा धारण करी लीधी;
परंतु बीजा त्रणे दुर्मति मंत्रीओ कुमरणथी मरीने दुर्गतिने पाम्या. ते त्रणमांथी
महामति अने संभिन्नमति ए बन्ने तो अत्यंत हीन एवी निगोददशाने पाम्या छे, के
ज्यां अतिशयगाढ अज्ञानअंधकार घेरायेलो छे, तथा अतिशय तप्त ऊकळता पाणीमां
ऊठता खदखदाटनी माफक ज्यां अनेकवार जन्म–मरण थया करे छे. अने त्रीजो शतमति
मंत्री पोताना मिथ्यात्वने कारणे अत्यारे नरकगतिमां छे, ने त्यां महा दुःखो भोगवी