Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : द्वि. श्रावण : २४९२
रह्यो छे. दुष्कर्मोनुं फळ भोगववा माटे जीवोने नरक ज मुख्यस्थान छे. जे जीव
मिथ्यात्वरूपी विषथी मूर्छित थईने हितकारी जैनमार्गनो विरोध करे छे ते दुर्गतिरूपी
मोजाथी ऊछळता आ संसारसमुद्रमां दीर्घ काळ सुधी घूमे छे. सम्यग्ज्ञाननो विरोधी जीव
अवश्य नरकरूपी घोर अंधकारमां पडे छे; माटे विद्वान पुरुषोए हंमेशा आप्तप्रणीत
सम्यग्ज्ञाननो ज अभ्यास करवो जोईए. धर्मना प्रभावथी आ आत्मा स्वर्ग–मोक्षरूप
उंचा स्थानने पामे छे, ने अधर्मना प्रभावथी नरकादि अधोगतिने पामे छे; तथा
मिश्रभावथी मनुष्यपणुं पामे छे, एम तुं निश्चयथी जाण. तारा शतबुद्धि–मंत्रीनो जीव
मिथ्याज्ञाननी द्रढताने लीधे बीजी नरकमां अत्यंत भयंकर दुःख भोगवी रह्यो छे.
पापथी पराजित आत्मा धर्मप्रत्ये द्वेष अने अधर्म प्रत्ये प्रेम करे छे. तेणे स्वयं करेला
अनर्थनुं आ फळ छे. आ वात निर्विवादपणे प्रसिद्ध छे के धर्मथी सुख मळे छे ने
अधर्मथी दुःख मळे छे. माटे बुद्धिमान जीवो अनर्थोने छोडीने धर्ममां तत्पर थाय छे.
प्राणीदया, सत्य, क्षमा, निर्लोभता, तृष्णारहितपणुं, तथा ज्ञान–वैराग्यसम्पन्नपणुं ते
धर्म छे; तेनाथी विपरीत अधर्म छे. जेम हडकायुं कूतरुं करडयुं होय तो समय पाकतां
तेना झेरनी असर देखाय छे तेम अधर्मसेवनथी करेला पापकर्म पण समय पाकतां
नरकमां भारे दुःख दे छे. पापकर्मनुं फळ बहु कडवुं छे. नरकमां पडेलो जीव त्यां एक
क्षणभर पण दुःखथी छूटकारो पामतो नथी, एने एक क्षण पण शान्ति मळती नथी.
श्रीधरदेव प्रीतिंकर भगवानने पूछे छे के हे प्रभो! नरकनां दुःखो केवां छे? ने
त्यां जीव क््या कारणथी ऊपजे छे?
त्यारे प्रितिंकर भगवान दिव्यध्वनि द्वारा कहे छे के–ए नरकनां घोर दुःखोनुं वर्णन
जो तुं सांभळवा चाहतो हो तो क्षणभर मनने स्थिर करीने सांभळ! जे जीव हिंसा जूठुं–
चोरी–परस्त्रीरमण वगेरे पापकार्योमां तत्पर छे, जे दारू पीए छे, जे मिथ्यामार्गने सेवे छे,
जे क्रूर छे. रौद्रध्यानमां तत्पर छे, प्राणीओ प्रत्ये निर्दय छे, अति आरंभ परिग्रह राखे छे,
जे सदा धर्मप्रत्ये द्वेष राखे छे, अधर्ममां प्रेम करे छे, जे साधुवर्गनी निंदा करे छे, जे
मात्सर्यभावथी हणायेलो छे, जे धर्मसेवन करनारा परिग्रह–रहित मुनिओ प्रत्ये वगर
कारणे क्रोध करे छे. जे अतिशय पापी छे, जे मध–मांस खावामां तत्पर छे–एवा जीवो तीव्र
पापना भारथी नरकमां पडे छे. नरक सात छे; पहेली रत्नप्रभा, पछी शर्करा प्रभा,
वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा अने सातमी महातमःप्रभा ए सात
नरकभूमि छे. जे अनुक्रमे नीचे नीचे छे. असंज्ञीपंचेन्द्रिय जीव पहेली नरक सुधी जाय छे;
सरकनारा जीवो (घो वगेरे) बीजी पृथ्वी सुधी, पक्षी त्रीजी सुधी, सर्प चोथी सुधी, सिंह
पांचमी सुधी, स्त्री छठ्ठी सुधी ने तीव्र पापी मनुष्य तथा मच्छ सातमी नरक सुधी जाय छे.
ते नरकमां पापी जीवो मधपूडानी जेम उपर लटकता खराब स्थानमां ऊंधा मुखे ऊपजे
छे;–पापी जीवोनुं ऊर्ध्वमुख