: द्वि. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : २१ :
क्यांथी होय? पापना उदयथी ते जीव अंतर्मुहूर्तमां दुर्गंधित, घृणित, देखवुं न गमे तेवुं
अने बेडोळ आकारनुं शरीर रचे छे. अने पछी, जेम झाड उपरथी पान नीचे तूटी पडे
तेम ते नारकी जीव धगधगती नरकभूमि उपर पटकाय छे; ते भूमिमां खोडायेला
अणीदार हथियारो उपर ते पडे छे अने तेना शरीरनी बधी संधि छिन्नभिन्न थई जाय
छे,–क्यां हाथ, क्यां पग, क्यां मोढुं एम बधुं वेरविखेर थई जाय छे, एटले महा
पीडाथी दुःखित थईने ते जीव राडेराड पाडीने रोवा लागे छे. त्यांनी भूमिनी अपार
गरमीथी तप्तायमान थयेलो ते जीव व्याकुळताथी पडतां वेंत ज धगधगता तावडामां
पडेला तलनी जेम ऊछळे छे अने पाछो नीचे पडे छे. पडतां वेंत ज अतिशय क्रोधी
बीजा नारकी जीवो तेने खूब मारे छे ने शस्त्रोथी ते नवीन नारकीना शरीरना कटके
कटका करी नांखे छे. जेम लाकडीथी मारतां पाणीनां टीपेटीपां छूटा पडे ने पाछा भेगा
थाय–तेम ते नारकीनुं शरीर हथियारोना प्रहारथी छिन्नभिन्न वेरविखेर थईने
क्षणभरमां पाछुं संधाई जाय छे.–एथी ते महा दुःख पामे छे.
शतमुखमंत्री नारकीना जे दुःखो भोगवी रह्यो छे–ते नारकीना दुःखोनुं वर्णन करतां
श्री प्रीतिंकर भगवान कहे छे के–ते नारकीओ पूर्ववेरने याद करी करीने परस्पर लडे छे;
त्रीजी नरक सुधी असुरकुमार जातिना अतिशय भयंकर देवो ते नारकीओने पूर्ववेरनुं
स्मरण करावीने अंदरोअंदर लडावी मारे छे. कोई नारकीओ गीधपक्षीनुं रूप धारण करीने
वज्र जेवी चांचथी नारकीना शरीरने चीरी नांखे छे, तथा काळा काळा शियाळ–कूतरा वगेरे
तीव्र नखोथी तेने फाडी खाय छे. हजारो काळोतरा सर्प ने वींछी एकसाथे झेरी डंख दे छे.
केटलाक नारकीओ उकळता तांबानो रस पीवडावे छे, केटलाक नारकीना कटका करीने तेने
घाणीमां तलनी माफक पीली नाखे छे, ने केटलाकने तावडामां उकाळीने तेनो रस करी नांखे
छे; पूर्वे जे जीवो मांसभक्षी हता तेमना शरीरमांथी कटका कापी कापीने तेमने ज
बळजबरीथी खवडावे छे, तथा साणसीवडे तेनुं मोढुं फाडीने बळजबरीथी तेने लोढाना
धगधगता गोळा खवडावे छे. पूर्वे परस्त्रीमां रत हता ते नारकीने धगधगती लालचोळ
लोढानी पूतळी साथे आलिंगन करावे छे, जेनो स्पर्श थतां ज ते सळगी ऊठे छे, तेनी
आंख फाटी जाय छे, ने मूर्छित थईने ते जमीन उपर ढळी पडे छे; तरत बीजा नारकीओ
लोढाना चाबुकथी तेने मारे छे. अरे, आवी घोरातिघोर पीडा अधर्मना सेवनथी जीव
नरकमां भोगवे छे–जेनुं वर्णन वाणीमां पूरुं आवतुं नथी.
त्यां कांटावाळा धगधगता लोढाना झाड (सेमरवृक्ष) उपर नारकीने
जबरजस्तीथी चडावे छे; पछी तेने उपरथी नीचे, ने नीचेथी उपर ढसेडे छे, तेथी तेनुं
आखुं शरीर छोलाई जाय छे; गंधाता रसथी भरेली नदीमां कोई नारकीने फेंके छे, तेमां
तेनुं शरीर ओगळी जाय छे. कोई नारकीने अग्निशैया उपर सुवडावे छे. त्यांनी
गरमीथी दुःखी थयेलो नारकी ज्यां असिपत्रना वनमां आशरो लेवा जाय छे