: २२ : आत्मधर्म : द्वि. श्रावण : २४९२
त्यां तो अग्नि वरसावतो ऊनो वायरो आवे छे ने तरवानी तीखी धारा जेवा पांदडा
तेना उपर पडे छे, ते तेना शरीरने चीरी नांखे छे. ते बिचारो दीन नारकी दुःखी थईने
चीचीयारी करे छे.–पण त्यां एनो पोकार कोण सांभळे?
ते नारकीने बीजा नारकी लोढाना सळीया साथे बांधीने अग्निमां सेकी नांखे छे;
पहाड उपरथी ऊंधे माथे पछाडे छे; धारदार करवतवडे तेना शरीरने विदारे छे; शरीरमां
भाला जेवी सोय भोंके छे, सूयानी अणीमां परोवीने तेने फेरवे छे; घणा नारकी तेने
मगदळवडे माथे एवो पीटे छे के तेनी आंखो बहार नीकळी जाय छे. पूर्वे जेणे
अभिमान सेवेलुं एवा ते नारकी जीवने धगधगता लोढाना आसन उपर पराणे
बेसाडे छे, ने कांटानी पथारी उपर सुवडावे छे.
आ प्रकारे नरकनी अत्यंत असह्य ने भयंकर वेदना पामीने भयभीत थयेला ते
नारकीना मनमां एम चिन्ता थाय छे के अरेरे! अग्निज्वाळा जेवी गरम भूमि बहु ज
कष्टदायक छे, अहींनो वायरो सदा अग्निना तणखां वरसावे छे; दिशाओ एवी सळगे छे–
जाणे आग लागी होय! ने मेघ तो धगधगती धूळ वरसावे छे. अहीं चारेकोरथी दुःख–दुख
ने दुःख छे. अमारा पूर्वभवना पाप ज अमने आ प्रकारनुं दुःख आपी रह्या छे. अहींनी
वेदना एटली तीव्र छे के कोईथी सहन न थाय; मार पण एटलो पडे छे के सहन न थई
शके. आयुष पूरुं थया वगर आ प्राण पण छूटता नथी; अने दुःख देता आ नारकीओने
कोई रोकी पण शकतुं नथी. अरे, आवी परिस्थितिमां अमे क्यां जईए? शुं करीए? क्यां
ऊभा रहीए? क्यां बेसीए? क्यां विसामो लईए? अमे शरणनी आशाए ज्यां ज्यां
जईए छीए त्यां त्यां ऊलटुं वधु ने वधु दुःख पामीए छीए. अरे, अहींना अपार दुःखथी
अमे क्यारे छूटशुं? क््यारे आनो पार आवशे? अमारुं आयुष्य पण सागर जेवडुं मोटुं छे.
आ प्रकारना वारंवार चिन्तनथी ते नारकीने अत्यंत मानसिक संतापवडे मरण जेवुं दुःख
थया करे छे. आ विषयमां अधिक कहेवाथी शुं लाभ छे? टूंकमां एटलुं ज बस छे के
जगतमां जेटला भयंकर दुःखो छे ते बधाय दुःखोने दुष्कर्मोए नरकमां एकठा करी दीधा छे.
आंखना एक टमकार मात्र पण सुख ते नारकीने नथी; दिनरात तेने दुःख दुःख ने दुःख ज
भोगववुं पडे छे. सेंकडो दुःखना भम्मरथी भरेला नरकरूपी समुद्रमां डुबेला ते नारकीओने
सुखनी प्राप्ति तो दूर रही पण तेनुं स्मरण थवुं ये बहु मुश्केल छे. ठंडी–गरमीना दुःख त्यां
असह्य ने अचिंत्य छे; संसारना कोई पदार्थनी साथे ए दुःखनी तूलना थई शके तेम नथी.
ते बधा नारकीओ हीनांग, कूबडा नपुंसक, दुर्गंधी, खराब काळा रंगवाळा कठोर अने
देखवामां अप्रिय होय छे. मरेला कूतरा–बिलाडा–गधेडाना कलेवरना ढगलामांथी जे दुर्गंध
आवे तेना करतांय नारकीना शरीर वधु दुर्गंधी छे.–आम पूर्वना पापकर्मोथी ते जीवो
अतिशय दुःखी छे.