Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : द्वि. श्रावण : २४९२
याद आवतां विषयोथी अत्यंत विरक्त थईने ते कठिन तपश्चर्या करवा लाग्यो, अने
आयुपूर्ण थतां समाधिमरणपूर्वक देह छोडीने ते स्वर्गनो ईन्द्र थयो. जुओ, क्यां तो
नारकी ने क््यां ईन्द्रपद! जीव पोताना परिणामअनुसार विचित्र फळ पामे छे. हिंसादि
अधर्म कार्योंथी जीव नरकादि नीच गतिने पामे छे, ने अहिंसादि धर्मकार्योथी ते स्वर्गादि
उच्च गतिने पामे छे. माटे उच्चपदना अभिलाषी जीवोए सदा धर्मनी आराधनामां
तत्पर रहेवुं जोईए. ब्रह्मस्वर्गमां ऊपजेला ते ब्रह्मेन्द्रे (शतबुद्धिना जीवे)
अवधिज्ञानवडे श्रीधरदेवना महान उपकारने जाण्यो, ने तेमना ज प्रतापथी
नरकदुःखोथी छूटीने आ ईन्द्रपद प्राप्त थयुं छे–एम समजीने पांचमा ब्रह्मस्वर्गमांथी
बीजा स्वर्गे आवीने पोताना कल्याणकारी मित्र श्रीधरदेवनी अत्यंत आदरपूर्वक भक्ति
करी, बहुमान कर्युं.
(आपणा चरित्रनायकने हवे पांच भव बाकी रह्या छे. तेओ पूर्वना दशमा भवे
महाबलराजा हता; पछी ललितांगदेव, पछी वज्रजंघ, पछी भोगभूमिमां
सम्यक्त्वप्राप्ति, ने पछी आ बीजा स्वर्गमां श्रीधरदेव थया; हवे आ श्रीधरदेवनुं
आयुष्य पूर्ण थतां पछीना भवमां ते विदेहक्षेत्रमां ऊपजशे ने मुनि थशे, पछी स्वर्गमां
जई पाछा विदेहक्षेत्रनी पुंडरगीरीनगरीमां अवतरशे ने त्यां चक्रवर्ती थई दीक्षा लई
तीर्थंकरप्रकृति बांधशे; त्यांथी सर्वार्थसिद्धिमां जशे ने पछी छेल्लो ऋषभअवतार थशे.
महापुराणना आधारे आ प्रसंगोनुं आनंदकारी वर्णन वांचवा माटे आत्मधर्मनी आ
लेखमाळा वांचता रहो.)
आत्मविश्वास अने द्रढतापूर्वक तुं
तारा हितमार्गमां आगळ वधजे.
आ मनुष्यजीवनरूपी चिन्तामणिने
जे दुर्वासनाना दरियामां फेंकी द्ये एना जेवो
मूर्ख कोण?
तुं एवो मूर्ख न बनीश.....जीवननी
एकेक क्षणनो आत्महितने अर्थे उपयोग
करजे.