: २६ : आत्मधर्म : द्वि. श्रावण : २४९२
(१३)
(आ वखते आ विभागमां प्रवचन उपरथी दश प्रश्न–उत्तर रजु करवामां आव्या छे.)
(१२१) प्र:– आत्माने जाणवानुं तत्काळ फळ शुं?
उ:– आत्माना अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन थाय ते.
(१२२) प्र:– खरुं ज्ञान कोने कहेवाय?
उ:– ज्ञानस्वरूप आत्माने ज्ञेय बनावे ते ज साचुं ज्ञान छे.
(१२३) प्र:– एक जीवनी साधक पर्यायो केटली? ने सिद्ध पर्यायो केटली?
उ:– एक जीवनी साधक पर्यायो असंख्य होय छे, सिद्धपर्यायो अनंत होय छे.
(साधकपर्यायो सादि–सांत छे; सिद्धपर्यायो सादि अनंत छे.)
(१२४) प्र:– साधक जीवो केटला? सिद्ध जीवो केटला?
उ:– साधकजीवो जगतमां एक साथे असंख्याता होय छे; सिद्धजीवो अनंता छे.
(१२प) प्र:– मोक्षने साधवा माटे उल्लसीत वीर्य क््यारे थाय?
उ:– स्वभावसन्मुख वळे त्यारे वीरता प्रगटे ने मोक्षने साधवा माटे वीर्य उल्लसे.
(१२६) प्र:– आत्मानो अनुभव करनार शुं छोडे छे.
उ:– आत्मानो अनुभव करनार परभावोने छोडे छे ने निजस्वभावने ग्रहण करे छे.
(१२७) प्र:– धन्य कोण छे?
उ:– सर्वज्ञस्वभावी आत्माने जेणे जाण्यो छे एवा ज्ञानी–भगवंत धन्य छे.
(१२८) प्र:– केवळी भगवानना गुणोनी स्तुति कई रीते थाय?
उ:– आत्माना ज्ञानस्वभावमां एकाग्रतावडे मोहने जीतवाथी केवळी भगवाननी
साची स्तुति थाय छे.
(१२९) प्र:– सम्यग्द्रष्टि खरेखर क््यां वसे छे.
उ:– स्वघर एवुं जे पोतानुं शुद्ध तत्त्व तेमां ज खरेखर धर्मी वसे छे; रागमां के
परमां पोतानो वास ते मानता नथी.
(१३०) प्र:– गृहस्थाश्रममां आत्मानो अनुभव ने ध्यान होय?
उ:– हा, धर्मीने गृहस्थपणामां पण आत्मानो अनुभव अने ध्यान होय छे; एना
वगर सम्यग्दर्शन ज संभवे नहि.