Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : २९ :
गया अंकना प्रश्नोना जवाब
(१) १. सिद्ध भगवाननुं साथीदार
मोक्षतत्त्व छे.
२. मुनिराजनुं साथीदार संवर तथा
निर्जरा तत्त्व छे.
छे.
(२) आपणा २४ तीर्थंकरोमांथी वीस
तीर्थंकरो सम्मेदशिखरथी मोक्ष पाम्या छे.
(३) आचार्य–मुनिराजना तथा तेमणे
रचेल शास्त्रनां नामो माटे पाछळ जुओ.
कोयडानो जवाब:– “केवळज्ञान” ते
जगतमां सौथी उत्तम छे; आपणा
भगवाननुं ए लक्षण छे; आपणने ते बहु ज
गमे छे; अरिहंत अने सिद्धभगवंतो सिवाय
बीजा कोई पासे ते होतुं नथी. अने तेनी
ओळखाण करतां सम्यक्त्व थाय छे.
बंधुओ, आ वखते नवा प्रश्नो नथी
आप्या; एने बदले मोक्षनो मारग शोधवानुं
एक चित्र छेल्ला पाने आप्युं छे. ते तमने
जरूर गमशे. नवा प्रश्नो आवता अंके पूछशुं.
छ वात
गतांकमां अधूरी राखेली छ वात अहीं
कारणसहित आपवामां आवी छे.
(१) परमात्माने जे जाणे ते ज
परमाणुने जाणी शके छे, केमके–परमाणु ते
परमअवधि अने सर्वअवधिज्ञाननो विषय
छे, ते ज्ञान सम्यग्द्रष्टिमुनिने ज होय छे, ने
तेमणे नियमथी स्वसंवेदनवडे
परमात्मतत्त्वने जाण्युं छे, एटले ज नहि–
तेओ नियमथी चरमशरीरी होय छे.
(२) दरेक मोक्षगामी जीवे एकवार तो
केवळी के श्रुतकेवळीना साक्षात् दर्शन जरूर
कर्या होय छे, केमके मोक्षगामी जीवने
नियमथी क्षायिक सम्यक्त्व होय छे ने ते
क्षायिक सम्यक्त्व केवळी के श्रुतकेवळीना
चरणसान्निध्यमां ज थाय छे.
प्र. तीर्थंकरोना आत्माने तो केवळी–
श्रुतकेवळीनी समीपता वगर पोताथी ज
क्षायिकसम्यक्त्व थाय छे?
उ:– हा, ए वात खरी; परंतु तेमनेय
तीर्थंकरप्रकृतिनो प्रारंभ तो केवळीनी