: ३६ : आत्मधर्म : द्वि. श्रावण : २४९२
प्रमाणसंग्रह; (सर्वज्ञसिद्धि– ए तेमनो
खास विषय छे.)
विद्यानंदीस्वामी: अष्टसहस्री टीका–
आप्तपरीक्षा; तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिक टीका.
जयसेनाचार्य: समयसार वगेरेनी टीका.
प्रभाचन्द्रआचार्य: प्रमेयकमलमार्तंड
(टीका)
शुभचंद्रआचार्य: ज्ञानार्णव
कुमुंदचंद्र स्वामी: न्यायकुमुदचंद्र
मानतुंगस्वामी: भक्तामरस्तोत्र
(आदिनाथस्तुति)
वादीराजमुनि : एकीभाव स्तोत्र
पद्मप्रभमुनिराज: योगसार; श्रावकाचार.
जयसेन (वसुबिंदु) स्वामी: जिनेन्द्र–
प्रतिष्ठापाठ
(अहीं टूंक यादी आपी छे. आ सिवाय बीजा अनेक पूज्य सन्त मुनिवरो तेमज
वीतरागी शास्त्रो छे. अहीं जणावेला लगभग बधा ज शास्त्रो हाल विद्यमान छे, ने
छपाईने प्रसिद्ध थयेला छे. बाळको, तमे मोटा थाव त्यारे जरूर एनी स्वाध्याय करजो.
एटले आपणा ए पूर्वजो केवा महान हता–तेनो तमने ख्याल आवशे.
बाळको, आ सिंह अने
सर्पने जुओ; ते तमने कंईक
सारी मजानी वात कहे छे. शुं
कहेता हशे? एनी भाषा तमे
समजो छो? न समजता हो तो
आवता अंकमां वांचजो.
महापुरुषोनी छायामां रहेवाथी ने तेमनी
आज्ञामां वर्तवाथी दोषो टळे छे ने गुणो प्रगट थाय छे.
केमके गुणीजनोना आश्रयमां दोष क््यांथी टकी शके?