: ३८ : आत्मधर्म : द्वि. श्रावण : २४९२
(महावीर पछी ३४प वर्षो बाद) (महावीर पछी प६७ वर्षो बाद)
२० नक्षत्र–आचार्य ११ अंगधारक २९ अर्हंतबलि मुनिराज एक अंगधारक
२१ जयपाल–आचार्य ” ३० माघनन्दि आचार्य ”
२२ पांडव–आचार्य ” ३१ माघनन्दिस्वामीना बे शिष्यो ”
२३ धु्रवसेन–आचार्य ” धरसेन अने जिनसेन
२४ कंस–आचार्य ” ३२ धरसेनस्वामीना बे शिष्यो
२प सुभद्र–आचार्य १०–९ के ८ अंगधारक पुष्पदन्त, ने भूतबलि तथा
२६ यशोभद्र–आचार्य ” जिनसेनस्वामीना शिष्य
२७ भाद्रबाहु (बीजा) ” कुंदकुंदाचार्य
२८ लोहाचार्य ” आपणा जैनसमाजना आ समस्त
(नव आचार्योनो कुल काळ २२२ वर्ष) पूज्य–परिवारने नमस्कार हो.
कुंदकुंदाचार्य पछी पण अनेक पूज्य–सन्तो जैनपरिवारमां थता आव्या छे. आजे
पण शुद्धचैतन्यना आराधक सन्तो आपणा जैनपरिवारमां साक्षात् जोवा मले छे. आपणुं
महान भाग्य के जगतनो आवो सर्वोत्तम धार्मिक परिवार आपणने प्राप्त थयो. आपणा आ
आराधनानो वारसो आपणने आप्यो ते शुद्धात्मतत्त्वना आराधक थईने आपणा आ पूज्य
परिवारने अनुसरीए....ए वीरना–वंशजो तरीके आपणुं कर्तव्य छे; अने तेथी ज आपणे
गौरवपूर्वक कहीए छीए के–“अमे तो जिनवरनां सन्तान!”
आ अंकमां ७मा पाने छपायेल बंने कोयडानो उकेल
महावीर सीमंधर
मनमां छे पण तनमां नथी... (म) सिद्धपुर
हास्यमां छे पण शोकमां नथी.... (हा) मंदारगिरि
वीसमां छे पण चालीसमां नथी.... (वी) धरमपुर
रसमां छे पण बसमां नथी....... (२) रम्यनगर
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आ अंकमां १७मा पाने छपायेल बे शब्दचोरसनो उकेल.
(१) श्री महावीर; सीमंधर (२) बालविभाग–सोनगढ.