: द्वि. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : ३९ :
वह घडी कब आयगी
एक नानी बालिका लखे छे के आपे मोकलेल
आंबामांथी सम्यग्ज्ञाननी पहेली केरी लेवा माटे
प्रयत्न करुं छुं. तथा ते पोताना जन्मदिवसे भावना
भावे छे के–
जन्म–मरणका नाश होवे ईस दुःखी संसारसे,
श्राविका–अर्जिका बनके विचरुं, वह घडी कब
आयगी?
चल पडुंगी मोक्षके रास्ते वह घडी कब आयगी?
आत्मध्यानकी मस्तीमें रहुं वह घडी कब आयगी?
आयगा वैराग्य मुझको ईस दुःखी संसारसे.
त्याग दूंगी मोह–ममता वह घडी कब आयगी?
हाथमें पींछी–कमंडल, ध्यान आतमरामका,
छोडकर घरबार दीक्ष धरुं, घडी कब आयगी?
एकाकी वनमें विचरूं प्रभु सिद्धसे बातें करुं,
निर्विकल्प समाधि होवे वह घडी कब आयगी?
...... (नं. २१प)
सत्संगका सेवन करो, रुचि पात्रताको द्रढ करो;
लो लगादो आत्मकी तब वह घडी झट आयगी.
* * *
विजय एच. जैन (नं. ४१४) बालविभागना
सभ्योने माटे बे शब्दचोरस मोकले छे. पहेला
चोरसामां बे भगवान अने बीजा चोरसामां
तमारी प्रिय वस्तु छे; शोधो काढो–
(१) म सी र (२) सो बा वि
मं श्री ध ग ग न
हा र वी भा ढ ल
छे तो बंने सहेला: छतां न जडे तो जवाब; आ
मारे जावुं छे मोक्ष
(मारे जावुं छे पेले पार
होडीवाला होडी हंकार..... ए राग)
* * *
एक मुमुक्ष बेन लखे छे के नानपणमां चांदनी
राते अमे रासडा लेता त्यारे तेमां आवी भावना
भावता के–
जवुं छे मोक्ष.....मारे...जवुं छे मोक्ष......
प्रभुजी अमोने तारो पार.....मारे.....
पद्म सरोवर कांठे मोती,
जेम चरे हंस चारो गोती,
शोधुं एम मोक्षनो मार्ग......मारे जावुं छे मोक्ष....
व्योम विषे जेम वादळ माले,
धमधम मोक्षनुं वैमान चाले,
कापी मोह–माया.....मारे जावुं छे मोक्ष.....
दूर दिंगते वाटडी जोती,
अणदीठुं ने धीरज खोती,
क््यारे पामुं मोक्ष.....मारे जावुं छे मोक्ष......
अंतर आंखे देखुं किनारा,
दूर दूर झांखुं मुक्ति मिनारा,
जागे भाग्य अमारा......मारे जावुं छे मोक्ष.....
मिथ्या जगनी तजीने वाट
झट उतारो अलौकिक घाट
सूणी अंतर पुकार......मारे जावुं छे मोक्ष......
* * *
“आत्मधर्म जोयुं; घणी ज प्रगति थई जशे.
बधा जीवोने उपयोगी लखाण आवे छे; सहेलुं ने
सुंदर बनेल छे. बाळको माटे पण घणुं ज सुंदर छे.”
–जे. ए. जैन