: ४० : आत्मधर्म : द्वि. श्रावण : २४९२
परदेशना भाई–बहेन भावना भावे छे–
परदेशमां वसता आपणा बाल–
परिवारना सभ्य (नं. ११प४) दीनेशकुमार
जैन (मांडले, बरमाथी) लखे छे के
बालविभाग वांचीने तेना सभ्य थवानुं मने
बहु ज मन थतुं हतुं. मारा मा–बापुजी अमने
‘आत्माधर्म’ तथा भगवाननी वातो संभळावे
छे; तथा शरीर अने आत्मा जुदा छे एम
समजावे छे. मने जैनधर्मनी अने वीरपुरुषोनी
वातो सांभळतां तथा बालविभाग वांचतां
खूब ज आनंद थाय छे. मारो प्रश्न अने
भावना नीचे मुजब छे–
प्र
० रमत–गमतमां के तावमां हुं मारा
आत्माने शरीरथी जुदा जाणुं तो हुं जलदी सिद्धभगवान बनी जईश?
उ
०– भाई, जीव अने जडनी भिन्नतानुं स्वरूप बराबर ओळखीए पछी ज साचुं
भेदज्ञान थाय. भेदज्ञान प्रगटती वखते तो शरीरथी जुदा आत्मानो कोई एवो अनुभव
थाय के जेना बळे पोताने मोक्षनी खातरी थई जाय.–ने पछी आवो प्रश्न ऊठे नहि. आवुं
भेदज्ञान थया पहेलां ते प्रगट करवानी भावना होय ते सारी वात छे.
तेओ लखे छे–“मारी भावना एवी छे के, जो मने पांख मळे तो गुरुदेवना दर्शन
करीने रोज पग दाबवा ईच्छुं छुं; अने सीमंधर भगवान पासे ऊडीने जवा मांगुं छुं–तो मने
पांख क््यारे मळशे? ने मारी भावना क््यारे पूरी थशे?
भाई, पंखीनी पांख तो न होय–ए सारूं, केमके एने माटे तो तिर्यंचगतिमां अवतार
लेवो पडे, पण जो ज्ञानरूपी पांख लगाडीने चैतन्यआकाशमां निरालंबीपणे ऊडो तो तमने
सीमंधरनाथना ने गुरुदेवना साक्षात् दर्शन थई जशे. बाकी सोनगढ आवीने गुरुदेवना पग
दाबवा माटे तो बरमाथी बलुनमां बेसी जाव एटले बीजे दि’ सोनगढ भेगा.–एमां तमारे
पांखनीये जरूर नहि पडे.
ए दीनेशभाईनी बहेन मीनाकुमारी (वर्ष ९ नं ११प३) पण बरमाथी लखे छे के
“आत्मधर्म मळतां अने बालविभाग जोतां मने गुरुदेवने जोवानुं बहु मन थाय छे; हुं
दररोज सीमंधर भगवाननी पूजा करुं छुं. आत्मधर्म वांचता मने संसार उपर खूब ज
वैराग्य आवे छे. मारा बे प्रश्न–
प्र
० १: कया मंत्रथी सीमंधर भगवान पासे पहोंचाय?
उत्तर:– ज्ञान मंत्रथी; जो आपणे आपणा ज्ञानमां सीमंधर भगवाननुं स्वरूप
ओळखीए तो सीमंधर भगवान आपणा ज्ञानमां बिराजे; अथवा कोई विशिष्टज्ञान प्रगट
करतां सीमंधर भगवान देखाय; अथवा सोनगढ आवे तो