: द्वि. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : ४१ :
सीमंधरभगवाननां दर्शन थशे? बाकी विदेह क्षेत्रमां पहोंचवानुं तो अत्यारे अघरूं छे.
बेन, आ शरीरथी त्यां पहोचवानो मंत्र तो मने नथी आवडतो; नहितर तो तमारी
जेम मने य भगवानना दर्शन करवानुं बहु मन छे.
प्र
०–२: मारे ब्रह्मचारी बनवुं होय तो शुं करवुं?
उत्तर:– ब्रह्मस्वरूप आत्मानी लगनी जगाडीने सोनगढमां पू. बेनश्री–बेननी
छायामां रहेवुं. बेन, तमारा जेवा नव वर्षनां नानां बाळको परदेशमां वसवा छतां
नानपणथी आवा वैराग्यना ने ज्ञानना विचार करे ते बहु सारी वात छे. भाई–बेन
बंने धर्ममां उत्साहथी आगळ वधजो ने वेलावेला स्वदेश आवजो.
‘बालविभाग’ माटे कोलेजीयन बंधुना उद्गार
आत्मधर्मनो बालविभाग जोईने तथा दर्शनकथा वांचीने अमारा छात्रालयना
४प सभ्योए नाम लखाव्या छे. बालविभागनुं नाम संभाळतां घणो आनंद आवे छे.
बालविभागद्वारा धार्मिक संस्कारनुं जे सिंचन थाय छे ते जोई भावि पेढीनुं उज्वळ
जीवन, आध्यात्मिकरुचि केटलीक वधशे? ते विचारे आजे आनंद थाय छे. जैनधर्मना
अनुयायीनी बीजी ईच्छा शी होय? पोते आत्महित करे अने अन्य जीवो पण
आत्महित करे. हजार उपर पहोंचेली ने हजी पण झडपथी वधती जती सभ्यसंख्या
जोतां एम थयुं के बालविभागद्वारा ऊंडा बीज ववाई रह्या छे ने तेना मीठां आम्रफळ
अमे आस्वादीए. (चेतन जैन: फत्तेपुरवाळा स. नं. २६३)
मोक्षार्थी ए त्रण वस्तु नक्की करवी जोईए–
* आत्मामां पूर्ण शुद्धतानी शक्ति छे, पूर्ण ज्ञान ने पूर्ण आनंद
आत्मस्वभावमां भरपूर छे. ते शक्ति परनी अपेक्षा वगर स्वयंसिद्ध छे.
* वर्तमान अवस्थामां अल्पज्ञता–मलिनता दुःख छे, ते पोताना
अपराधथी छे, बीजाना कारणे नहि.
* ते अल्पज्ञता–मलिनता ने दुःख टळीने सर्वज्ञता, शुद्धता ने आनंद
प्रगटी शके छे, ने ते पोतानी स्वसन्मुखताथी ज प्रगटे छे, बीजाना कारणे नहि.
आ रीते नक्की करीने स्वभावसन्मुख परिणमतां अवस्थामांथी दुःख
टळीने आनंद प्रगटे छे, अल्पज्ञता टळीने सर्वज्ञता प्रगटे छे, मलिनता टळीने
शुद्धता प्रगटे छे. आनुं नाम मोक्ष.