उत्साही सभ्य नं. प९८
(रवीन्द्र जैन–मोरबी) ए
व्यक्त करेली सुंदर भावना.
भगवान ऋषभदेवना छेल्ला दश अवतारनी कथामां ‘भोगभूमिमां
नयनोमांथी हर्षना आंसु नीकळी नीकळीने मुनिराजना चरण उपर पडवा लाग्या’ ए
प्रसंग हृदयना तार झणझणावी मूके तेवो छे!
प्रतिबोधवा माटे साक्षात् मुनि पोते विदेहक्षे्रत्रमांथी भोगभूमिमां पधारे छे. पूर्वभवना
मित्रने सम्यक् दर्शनना दान देवा दूर दूरना देशावरथी मुनिराज आवे छे! ‘मारो मित्र
क्यां छे? शुं तेनी स्थिति छे?’ अवधिज्ञानथी ए जाणीने, तथा मारो पूर्वभवनो मित्र
पोते आवे छे अने कहे छे ‘अमे तने सम्यक्त्व पमाडवा माटे आव्या छीए’ ए वात
ऊंडुं विचारतां हृदयने विरहनी याद साथे कोई नवी वात कही जाय छे.
आपणा मुनिराज त्यां पधार्या हता, तो हवे कोईक विदेहक्षेत्रनां मुनिराज अहीं
भरतक्षेत्रे पधारो ने!
मोक्षमार्गनी केडीए आगळ वधी जाय ते, बीजा बालसभ्योने अवश्य मदद करे.
प्रीतिंकर मुनिराजे तेना मित्र वज्रजंघने (सम्यक्दर्शन पमाडवामां) मदद करी हती तेम
जिनवरना संतानो एवा आपणे सौए मोक्षनगरीमां जतां जतां साथे रहीने
एकबीजाने सहाय करवी छे. कोई मित्र संसारमां न रही जवो जोईए.