Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ४२ : आत्मधर्म : द्वि. श्रावण : २४९२
खरी मित्रता
ऋषभचरित्र वांचीने आपणा
उत्साही सभ्य नं. प९८
(रवीन्द्र जैन–मोरबी) ए
व्यक्त करेली सुंदर भावना.
मुनि मित्र थईने आवो, कृपा करीने धर्म पमाडो........
तेम सम्यग्दर्शननां भेटणां लई बालविभागनां भाईबंधो सौ आवो

भगवान ऋषभदेवना छेल्ला दश अवतारनी कथामां ‘भोगभूमिमां
सम्यक्त्वप्राप्ति’ ए लेखांक बहु ज गम्यो. महामोंघा मुनिराजना दर्शन थतां वज्रजंघना
नयनोमांथी हर्षना आंसु नीकळी नीकळीने मुनिराजना चरण उपर पडवा लाग्या’ ए
प्रसंग हृदयना तार झणझणावी मूके तेवो छे!
मुनिराज सम्यक्त्व पमाडवा आवे–अहा! केटली पात्रता! केवी पवित्रता! केवो
पून्यनो ए प्रकार!! पूर्व भवे ऋषभदेवनो आत्मा परममित्र हतो तेथी तेने
प्रतिबोधवा माटे साक्षात् मुनि पोते विदेहक्षे्रत्रमांथी भोगभूमिमां पधारे छे. पूर्वभवना
मित्रने सम्यक् दर्शनना दान देवा दूर दूरना देशावरथी मुनिराज आवे छे! ‘मारो मित्र
क्यां छे? शुं तेनी स्थिति छे?’ अवधिज्ञानथी ए जाणीने, तथा मारो पूर्वभवनो मित्र
हजी सम्यक्त्व नथी पाम्यो माटे तेने सम्यक्त्व पमाडुं एम मित्रने मदद करवा मुनि
पोते आवे छे अने कहे छे ‘अमे तने सम्यक्त्व पमाडवा माटे आव्या छीए’ ए वात
ऊंडुं विचारतां हृदयने विरहनी याद साथे कोई नवी वात कही जाय छे.
सोनगढमां पण सन्तो घणां दूर दूरना देशथी (विदेहथी) आव्या छे, ए
भरतक्षेत्रमां जीवोनी पात्रता सूचवे छे. भरतक्षेत्र अने विदेहक्षेत्र तो मित्र छे. अहींथी
आपणा मुनिराज त्यां पधार्या हता, तो हवे कोईक विदेहक्षेत्रनां मुनिराज अहीं
भरतक्षेत्रे पधारो ने!
बालविभागना समस्त परिवार साथे हुं अगत्यना कोल करवा ईच्छुं छुं. हुं
सर्वने मारा परम मित्र बतावुं छुं अने मित्रतानी मागणी करुं छुं के जे कोई
मोक्षमार्गनी केडीए आगळ वधी जाय ते, बीजा बालसभ्योने अवश्य मदद करे.
प्रीतिंकर मुनिराजे तेना मित्र वज्रजंघने (सम्यक्दर्शन पमाडवामां) मदद करी हती तेम
जिनवरना संतानो एवा आपणे सौए मोक्षनगरीमां जतां जतां साथे रहीने
एकबीजाने सहाय करवी छे. कोई मित्र संसारमां न रही जवो जोईए.