: द्वि. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : ४३ :
वाचको साथे वातचीत
(सर्वे जिज्ञासुओनो प्रिय विभाग)
प्रश्नः– सात तत्त्वका श्रद्धान किस तरह होता है। (स. नं १४९)
उत्तर:– सात तत्त्वमां पोतानो शुध्ध आत्मा उपादेय छे, तेना आश्रयथी जे
सम्यक्त्वादि निर्मळभावो (एटले के संवर–निर्जरा–मोक्ष) प्रगटे छे ते मने आनंदकारी छे, ते
मारुं स्वरूप छे; अने माराथी भिन्न अजीवतत्त्वोना आश्रये आकुळभावो (आस्रव ने बंध)
थाय छे, ते मने सुखरूप नथी पण दुःखरूप छे, ते मारुं स्वरूप नथी.–आवा प्रकारे भावोनी
भिन्नता ओळखतां शुध्धात्मा तरफ रुचिनुं वलण जाय छे अने अशुद्धता तरफथी रुचि हटी
जाय छे,–त्यारे सात तत्त्वनुं साचुं श्रध्धान थाय छे. समयसारनी भाषामां कहीए तो सात
तत्त्वने जाणीने ज्यारे भूतार्थरूप शुध्धआत्मानो आश्रय करे त्यारे सम्यक्त्व थाय छे ने त्यारे
ज सात तत्त्वनी साची श्रद्धा थाय छे.
* सभ्य नं. १०२८–१०३०ना वडील लखे छे
“गुरुदेव आत्मानी जे वात समजावे छे ते नाना बाळकोने पण समजाववामां
आत्मधर्मनां बालविभागे मोटो फाळो आप्यो छे. मोटा माणसो तो समजी शके पण धर्मनी
आवी वात नाना बाळको पण समजी शके ने तेमां तेने रस पडे–एवी ढबथी रजुआत तथा
प्रश्न–उत्तर वडे बालविभाग खरेखर महत्त्वनो बन्यो छे; ने तेने आगळ धपाववा तमे जे
महेनत करो छो ते सफळ थाय–एवी अमारी प्रार्थना छे.”
प्र:– वीस विरहमान तीर्थंकर भगवंतो महाविदेहमां कई कई नगरीमां विचरे छे ते
जणावशो–जेथी अमने ख्यालमां रहे के वर्तमानमां भगवंतोना समवसरण कई जग्या ए
हशे!
उ:– मात्र नगरीना नाम जाणवाथी समवसरणनो के भगवानना स्वरूपनो ख्याल
आववो मुश्केल छे. एनुं स्वरूप कोई अचिंत्य छे. सर्वज्ञताथी भरपूर भगवाननुं
परमार्थस्वरूप लक्षगत करीए तो अहीं बेठा बेठा विदेहीनाथनुं स्वरूप चिंतवी शकाय. पांच
विदेहमांथी दरेकना ३२–३२ विजय छे; तेनो एकेक विजय आखा भरतक्षेत्र करतां मोटो छे.
एकेक विजयमां अनेक मोटा मोटा देश ने नगरो होय छे; तेमां विहार करता करता कोई पण
नगरीमां प्रभु बिराजता होय. सीमंधर भगवान पुष्कलावती नामना विजयमां विचरे छे.
पुंडरगीरीनगरी ए तेमनुं जन्मधाम छे. नगरी गमे ते होय पण तेमना स्वरूपने लक्षगत
करीने तेमनुं स्वरूप चिंतवी शकाय छे. ज्यां भगवान होय त्यांनो जे जीव भगवानना
स्वरूपने लक्षगत न करे (मात्र देहने देखे)–तेना करतां अहींनो जे जीव भगवानना