Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : ४४ :
स्वरूपने लक्षगत करीने चिन्तवे ते जीव भगवाननो नजीकनो भक्त छे.
* सभ्य नं. ७०३ पूछे छे –निर्विकल्प समाधिमां शुभाशुभ भाव होता नथी पण शुद्ध
भाव होय छे; तो ते वखते कया प्रकारना विचारो थता हशे ते समजातुं नथी. हारनी
खरीदीनुं द्रष्टांत समजाय छे पण आत्मस्वभावनुं बराबर समजातुं नथी के केवा प्रकारनुं
सुख हशे!
प्रश्न बहु सारो छे; पं. टोडरमल्लजी कहे छे के धन्य छे तेने के जे स्वानुभवनी चर्चा पण
करे छे! हवे स्वानुभव वखतना वेदननी आ वात अनुभवी ज्ञानी पासेथी साक्षात् सांभळीने
वारंवार अंतरमां तेनुं ऊंडु मंथन करीए त्यारे ज खरेखर लक्षगत थाय छे. निर्विकल्प अनुभूति
वखते विचारो होता नथी, ते वखते तो परमआनंदना वेदनमां ज उपयोग थंभी गयो छे. ए
वखतनुं वचनअगोचर सुख तो ते ज जाणे. ते दशा प्राप्त करवा वारंवार सत्समागमे, अत्यंत
उग्र आत्मार्थिता वडे, अंदरमां भेदज्ञाननो घणो घणो अभ्यास करीने, उपयोगने स्वभावमां
जोडवानो उद्यम करवो;–ए ज अनुभवना सुखने समजवानो उपाय छे. (हारनुं द्रष्टांत तो
बहारनुं स्थूळ उदाहरण छे.)
रावणे सीताजीनुं हरण कर्युं हतुं; छतां भविष्यमां रावणनो आत्मा ज्यारे तीर्थंकर थशे
त्यारे सीताजीनो आत्मा तेनो गणधर थशे; ए बाबतमां सभ्य नं. ७०६ स्पष्टता पूछे छे.
जीवोना परिणामनी एवी विचित्रता छे. वळी आ उदाहरण तो एम बतावे छे के अशुभ
परिणाम जीवे कर्या ते पलटीने ते शुभ अने शुध्ध परिणाम करी शके छे. एक वखतनो पापी जीव
पण आत्मानी आराधना वडे त्रण लोकनो नाथ परमात्मा थई शके छे.
* प्रश्न:– ज्यारे सम्यग्दर्शन प्राप्त थाय त्यारे निर्विकल्पदशामां केटलो समय सुधी
रहे? त्यार पछी पाछा केटला काळे ते साधक निर्विकल्पदशामां आवे! (एक सभ्य)
उत्तर:– सम्यक्त्व प्रगट थती वखतना निर्विकल्प अनुभवनो काळ बधा जीवोने
सरखो नथी होतो; छतां सामान्यपणे घणुं नानुं अंतर्मुहूर्त होय छे. विशेष लांबो काळ नथी
होतो.–जो के तेमांय असंख्यात समय तो खरा ज. अने फरीने निर्विकल्पता अमुक काळे थाय
छे. परंतु तेनुं कोई चोक्कस माप मलतुं नथी.
* दक्षिण प्रान्तनुं बाहुबली (कोल्हापुर)–के जे जिनवाणी–स्वाध्यायना प्रचार माटे
‘दक्षिण देशना सोनगढ’ जेवुं गणाय छे, त्यांना आगेवान भाईश्री बालचंद खेमचंद शाह
लखे छे के” –
आपने गुजराती मासिकका सम्पादकपद अलंकृत करके और उस
मासिकमें बालविभाग [अमे जिनवरना सन्तान] खोलकर जैन–जैनेतर बालकों पर
बहुत अनुग्रह किया है; तथा भगवान ऋषभदेव तीर्थंकर प्रभुके दश अवतारोंकी कथा
आदिपुराणके आधार पर, सम्यक्त्वोत्पत्ति के साधन बने इस प्रकार भावर्ण लिखकर
जैनसमाजके तरुण तथा वृद्धजनोंपर