Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : ४५ :
बडा उपकार किया है। आगे इसी प्रकारकी सेवा आपके द्वारा वृद्धिगत होती रहे यह
हम अंतःकरणपूर्वक भाव कर रहे है।
* स. नं. ६१८ (घाटकोपर) तथा बीजा अनेक सभ्यो लखे छे के “आत्मधर्मनो
बाल विभाग खूब गमे छे ने वांचवानी बहु मजा आवे छे”–बहेन! तमने एकलाने नहि
पण दोढ हजार बाळकोने (अने तेमना वडीलोने पण) मजा आवे छे. कुंदकुंद प्रभुनुं
जीवनचरित्र अने नवीन कथाना पुस्तको योग्य समये जरूर आपीशुं. मांगीतुंगी पहाड
उपरथी ९९ करोड मुनिवरो मोक्ष पाम्या छे,–ते बधाय एक साथे नहि पण आ आखी
चोवीसीमां एटला मुनिवरो त्यांथी मोक्ष पाम्या छे एम समजवुं. एक साथे तो १०८ थी वधु
जीवो कदी मोक्ष पामता नथी. जेमके गीरनार उपरथी बौतेर करोड ने सातसो (७२
००००७००) मुनि मोक्ष पामवानुं कथन छे, ते बधा कांई नेमिनाथ भगवाननी साथे ज
मोक्षमां नथी गया, पण आ चोवीसीना असंख्याता वर्षमां गमे त्यारे एकंदरे एटला
मुनिवरो त्यांथी मोक्ष पाम्या. एम दरेक तीर्थंमां मोक्षगामी जीवोनी संख्या बाबतमां समजी
लेवुं.
* बेंगलोरथी स. नं. ७प४ लखे छे के–मेरा साथी आत्मधर्म है। ज्येष्ठ मासके
अंकको देखते ही समझमें आया कि समुद्र तो विशाल है, जिसकी कोई हद नहीं। मैं
अपनी जबानसे व कलमसे अंककी तारीफलिखनेमें असमर्थ हूं। स्कूल की पढाइ खत्म
होते ही मैं आत्मधर्म को पढता रहता हूं। मेरा साथी दिनभर मुझे घेरे रहते है कि
अबके अंक में जो नयी बात आई हो सो बताओं।
* दाहोदमां दसेक वर्षनी एक बालिका आ भवमां गीता वगेरेनो अभ्यास कर्या वगर तेना
उपर धोधमार प्रवचन आपे छे. आ संबंधमां दाहोदथी सभ्य नं. ४०७ शैलेशकुमार लखे छे के
अज्ञानी बाळा होवा छतां कई रीते आ प्रकारनुं प्रवचन आपती हशे?
भाईश्री, ए कांई आश्चर्यनी वात नथी. पूर्वभवना ते प्रकारना संस्कार रही जाय एटले
एम बने. दरेक जीवने पूर्वभवना अमुक संस्कारो रही जाय छे; आपणा सोनगढमां पण पांच
वर्षनी राजुलने अढी वर्षनी उंमरे पोताना पूर्वभवनुं ज्ञान थयानी वात तमे जाणता हशो.
जीवनी ज्ञानशक्ति अपार छे एटले पूर्वभवना ज्ञाननो केटलोक उघाड कोईने (अज्ञानीने पण)
वर्तमानमां चालु रहे ते कांई आर्श्चयनी वात नथी. आवा प्रसंगो तो आत्मानो पूर्वभव, तेनी
नित्यता अने देहनी भिन्नता साबित करे छे.
* बालविभाग प्रत्ये लागणी धरावनार एक भाईनो अमदावादथी पत्र छे; तेमां
जैनसमाजना सुधरेला गणाता युवानोमां आजे आचरण संबंधी तीव्र अभक्षनुं भक्षण
वगेरे प्रवृत्ति नजरे पडे छे तेना प्रत्ये दुःख व्यक्त कर्युं छे, अने ते संबंधी आत्मधर्ममां
दोरवणी आपवा लख्युं छे. भाईश्री, आ संबंधमां जणाववानुं के–आपे जे प्रकारनी
अभक्ष्यप्रवृत्ति लखी छे तेवी अभक्ष्यनी प्रवृत्ति आपणा तो बालविभागना के आत्मधर्मना
एक पण सभ्यमा