Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : ५ :
थयो; जेवा सिद्धपरमात्मा छे तेवो ज हुं छुं, एम स्वभावनी मुख्यता करीने रागने
गौण करी नाख्यो, एमां परम आस्था थई, ते सिद्धसमान पोताना शुद्धात्माने ध्यावीने
जीव सिद्ध थई जाय छे. जेम बाळक माताने धावीधावीने पुष्ट थाय छे, तेम साधक जीवो
सिद्धसमान पोताना शुद्ध स्वरूपने ध्यावीध्यावीने सिद्धपदने साधे छे.
संसारनी चारे गतिथी विलक्षण एवी जे पंचमगति तेने शुद्धस्वरूपना ध्यान वडे
आ समयसारना वक्ता अने श्रोता चोक्कस पामे छे, तेमां शंकाने स्थान नथी. आवा
उत्तम भावपूर्वक सिद्धभगवंतोने आत्मामां पधरावीने आ समयसार शरू कर्युं छे.
सिद्धगति स्वभावरूप छे, संसारनी चारे गति तो परभावथी उत्पन्न थयेली छे,
कर्मना निमित्तथी थयेलो जे विभाव, तेनाथी थयेली देवादि चारे गति अधु्रव छे; ने आ
पंचमगति तो स्वभावभावरूप होवाथी धु्रव छे, तेमां हवे विनाशीकता नथी, ए
सादिअनंत एवीने एवी टकी रहेशे. चारे विभावगतिओने अने तेना कारणरूप
विभावभावोने मारा आत्मामांथी काढी नाखीने आवा सिद्धभगवंतोने स्थाप्या छे,
एटले हवे परिणतिनो प्रवाह विभावमांथी पाछो वळीने स्वभाव तरफ वळ्‌यो छे,
व्यवहार अने निमित्तनुं उपादेयपणुं काढी नाखीने एकला स्वभावनुं ज उपादेयपणुं
द्रष्टिमां लीधुं छे. जुओ आ सिद्धपदना साधकनुं मांगळिक! “पुत्रनां लक्षण
पारणामांथी जणाय” तेम सिद्धपदने साधवा जे ऊभो थयो तेना आवा लक्षण
शरूआतमां ज होय छे.”
“काम एक आत्मार्थनुं, बीजो नहि मनरोग”
आत्माना स्वभाव सिवाय बीजुं कोई (राग के विकल्प) तेनुं माहात्म्य लई
जाय एम नथी; तेना अंतरमां एक शुद्ध आत्मानुं ज माहात्म्य वस्युं छे. एनाथी
अधिक जगतमां बीजी कोई वस्तुनुं माहात्म्य तेने आवी जाय–एम बनतुं नथी.
“सिद्ध–सिद्ध” नां भणकार करतो जाग्यो ते बीजे क्यांय रागादिमां अटकतो नथी.
जुओ, आ सिद्धपद माटे साधकना महा मांगळिक!
केवळी अने श्रुतकेवळी भगवंतोए कहेल आ समयप्राभृतने हुं मारा अने
परना मोहना नाश माटे कहीश. सिध्धसमान आत्माने ध्येयरूपे राखीने आ शरू कर्युं छे
माटे ध्येयने चूकशो नहीं. आचार्यदेवने पोताने तो मिथ्यात्वादि मोहनो नाश थयो छे,
पण हजी जराक संज्वलन कषाय बाकी छे तेनो नाश करवा माटे आ समयसारनुं
परिभाषण करे छे, अने श्रोतामां जेने जे प्रकारनो मोह होय तेना नाशने माटे आ
श्रवण करजो....एटले वक्ता अने श्रोतामां जेने जे प्रकारे मोह होय तेना नाशने माटे
आ समयसार शरू करवामां आवे छे. आ समयसार समजे तेना मोहनो नाश थई
जशे–ने ते सिद्धपदने पामशे एम आचार्यदेवना कोलकरार छे.