Atmadharma magazine - Ank 275
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९२
ते ईन्द्रने उपभोगमां आवनारा देवविमानोनी संख्या सर्वज्ञप्रणीत आगममां
भगवाने १प९ कही छे. उत्तम जातिना ३३ देवो स्नेहभरी बुद्धिथी तेने पुत्रसमान
गणता हता. तेना परिवारमां दश हजार बीजा सामानिक देवो हतो, तेओनो वैभव जो
के ईन्द्रनी समान हतो, परंतु ईन्द्रनी माफक तेमनी आज्ञा चालती न हती. तेना
अंगरक्षक जेवा ४०००० देवो हता. स्वर्गमां जोके कोई प्रकारनो भय नथी होतो परंतु
ते अंगरक्षक देवो ईन्द्रनी विभूतिना सूचक छे. ईन्द्रने त्रण प्रकारनी परिषद–सभा होय
छे. ते अच्युत स्वर्गनी सीमानी रक्षा करनारा चार दिशामां चार लोकपाल हता अने
दरेक लोकपालने ३२ देवीओ हती, अच्युतेन्द्रने आठ महादेवीओ हती, ते उपरांत बीजी
६३ वल्लभिका देवीओ हती, अने एकेक महादेवीने अढीसो–अढीसो बीजी देवीओनो
परिवार हतो. ए रीते ते अच्युतेन्द्रने कुल बे हजार–एकोतेर देविओ हती. तेनुं चित्त
ए देवीओना स्मरण मात्रथी ज संतुष्ट थई जतुं हतुं. आ ईन्द्रनी दरेक देवीमां एवी
विक्रियाशक्ति हती के ते सुंदर स्त्रीनां दशलाख चोवीस हजार रूप बनावी शकती हती.
दरेक देवीने अप्सराओनी त्रण त्रण सभाओ हती. तथा ते ईन्द्रने हाथी, रथ, घोडा
वगेरे सात प्रकारनी सेना हती–जे देवोनी ज विक्रिया द्वारा बनेली हती. ते अच्युतेन्द्र
बावीसहजार वर्षमां एकवार आहार करतो हतो; तथा अगियार महिने एकवार श्वास
लेतो हतो. तेनुं अति सुंदर शरीर त्रण हाथ ऊंचुं हतुं. शास्त्रकार कहे छे के भगवान
आदिनाथनो जीव अच्युतेन्द्रनी पर्यायमां धर्मना प्रतापे आवी उत्तम विभूतिने पाम्यो
हतो, माटे भव्य जीवोए जिनेन्द्रदेवना कहेला धर्ममां पोतानी बुद्धि लगाववी जोईए,
ने भक्तिपूर्वक तेनुं आराधन करवुं जोईए. ते जीव आवी बाह्य विभूतिने पामवा छतां
अंतरमां तेनाथी भिन्न चैतन्यनुं भान हतुं. अंतरना चैतन्यवैभव पासे आ बधा
ईन्द्रवैभवने ते तूच्छ समजता हता. आ वैभवनी वच्चे रहीने पण अंतरना
चैतन्यवैभवनी महत्ताने एक क्षण पण ते भूलता न हता. सम्यग्दर्शननी अखंड धारा
टकावीने स्वर्गनां दिव्य भोगोनो अनुभव करतां; तेमां कोई वार देवे विक्रियावडे हाथीनुं
रूप धारण कर्युं होय–ते हाथी उपर चडीने गमन करता, क््यारेक जिनेन्द्र भगवाननी
महान पूजा करता, क््यारेक मध्यलोकमां आवीने तीर्थंकरदेवनी वंदना करता. एम
आनंदपूर्वक स्वर्गलोकनो दीर्घ काळ पसार करता हता.
एम करतां करतां देवलोकमां तेना आयुष्यना छ महिना ज बाकी रह्या अने
अच्युत स्वर्ग छोडीने मध्यलोकमां आववानी तैयारी थई, त्यारे तेना शरीर उपरनी
कल्पवृक्षना फूलोनी माळा एकवार अचानक करमाई गई. आना पहेलां क््यारेय ते
माळा करमाई न हती. स्वर्गथी च्यूत थवानां जेवां चिह्नो अन्य साधारण देवोने प्रगट थाय