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जवाथी जो के ईन्द्रने ख्याल आवी गयो हतो के हवे अल्पकाळमां हुं आ अच्युत
स्वर्गमांथी च्युत थईश;–तो पण ते ईन्द्र जरापण दुःखी न थया. केम के महापुरुषो एवा
ज धैर्यवान होय छे. ज्यारे मात्र छ मासनुं आयुष्य बाकी रह्युं त्यारे पवित्र बुद्धिवाळा
पंडितजनो आत्मकल्याणना अभिलाषी होय छे तेथी तेवा कार्योमां ते प्रवर्ते छे. आयुना
अंतसमयमां ते धर्मात्माए पंचपरमेष्ठीपदमां पोतानुं चित्त लगाव्युं. अने देवलोकमां
भोगवतां बाकी वधेला पुण्यथी संयुक्त आपणा आ चरित्रनायक स्वर्गमांथी च्यवीने
आ मनुष्यलोकमां अवतर्या.
छतां पण तेओ स्वर्गथी च्यूत थई जाय छे; माटे संसारनी आवी क्षणभंगुर–स्थितिने
धिक्कार हो. संपूर्ण सुखथी भरेलुं अने पुनरागमन रहित एवुं जे अविनाशी मोक्षपद
पुंडरीकिणीनगरीमां वज्रसेन तीर्थंकरना पुत्र तरीके अवतरशे, चक्रवर्ती थशे,
मुनिपणुं लईने तीर्थंकरप्रकृति बांधशे, उपशमश्रेणीमां चडीने अगियारमा
गुणस्थाने वीतरागताने अनुभवशे: त्यांथी सर्वार्थसिद्धिना अहमेन्द्र
थशे.......ने पछी छेल्ला अवतारमां ऋषभतीर्थंकर तरीके अवतरीने
भरतक्षेत्रना जीवोने माटे मोक्षमार्ग खुल्लो मुकशे.
सर्वे शास्त्रो भणवा छतां वैराग्य सिद्धि पमाती नथी–
ण हु सिज्झंति विरागेण विणा पढिदेसु वि सव्वसत्थेसु।।