Atmadharma magazine - Ank 275
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९२ आत्मधर्म : १७ :
छे तेवां ईन्द्रोने नथी थता, पण कोईक अल्प चिह्नो प्रगटे छे. पुष्पमाळा करमाई
जवाथी जो के ईन्द्रने ख्याल आवी गयो हतो के हवे अल्पकाळमां हुं आ अच्युत
स्वर्गमांथी च्युत थईश;–तो पण ते ईन्द्र जरापण दुःखी न थया. केम के महापुरुषो एवा
ज धैर्यवान होय छे. ज्यारे मात्र छ मासनुं आयुष्य बाकी रह्युं त्यारे पवित्र बुद्धिवाळा
ते अच्युतेन्द्रे भगवान अर्हन्तदेवनी पूजानो प्रारंभ क््यो; ते योग्य ज छे केम के
पंडितजनो आत्मकल्याणना अभिलाषी होय छे तेथी तेवा कार्योमां ते प्रवर्ते छे. आयुना
अंतसमयमां ते धर्मात्माए पंचपरमेष्ठीपदमां पोतानुं चित्त लगाव्युं. अने देवलोकमां
भोगवतां बाकी वधेला पुण्यथी संयुक्त आपणा आ चरित्रनायक स्वर्गमांथी च्यवीने
आ मनुष्यलोकमां अवतर्या.
अहीं आचार्यदेव कहे छे–के स्वर्गना देवो जो के सदा सुखसम्पन्न, महा धैर्यवान
अने मोटी मोटी ऋद्धिना धारक होय छे, तथा ईन्द्रोनुं असंख्य वर्षनुं आयुष्य होय छे,
छतां पण तेओ स्वर्गथी च्यूत थई जाय छे; माटे संसारनी आवी क्षणभंगुर–स्थितिने
धिक्कार हो. संपूर्ण सुखथी भरेलुं अने पुनरागमन रहित एवुं जे अविनाशी मोक्षपद
तेमां ज मुमुक्षुए पोतानी बुद्धि जोडवा योग्य छे.
हवे आपणा कथानायक भगवान ऋषभदेवना जीवने फक्त त्रण
अवतार बाकी रह्या. अच्युत स्वर्गमांथी चवीने ते विदेहक्षेत्रनी
पुंडरीकिणीनगरीमां वज्रसेन तीर्थंकरना पुत्र तरीके अवतरशे, चक्रवर्ती थशे,
मुनिपणुं लईने तीर्थंकरप्रकृति बांधशे, उपशमश्रेणीमां चडीने अगियारमा
गुणस्थाने वीतरागताने अनुभवशे: त्यांथी सर्वार्थसिद्धिना अहमेन्द्र
थशे.......ने पछी छेल्ला अवतारमां ऋषभतीर्थंकर तरीके अवतरीने
भरतक्षेत्रना जीवोने माटे मोक्षमार्ग खुल्लो मुकशे.
वैराग्यसंपन्न वीर अल्पज्ञान वडे पण सिद्धि पामे छे;
सर्वे शास्त्रो भणवा छतां वैराग्य सिद्धि पमाती नथी–
वीरा वेरग्गपरा थोवं पि हु सिक्खिउण सिज्झंति।
ण हु सिज्झंति विरागेण विणा पढिदेसु वि सव्वसत्थेसु।।