: भादरवो : २४९२ आत्मधर्म : २३ :
उपशमरसनतरत प्रवचन
हे जीव! तारा उपशमादि परिणाम तारा स्वद्रव्यना आश्रये ज थाय छे; ए
परिणाम तारा ज छे, कोई बीजाना नथी ने बीजाना आश्रये थता नथी. तारुं
सम्यग्दर्शन तारा द्रव्यना आश्रये छे, कोई बीजाना आश्रये नथी, तारुं केवळज्ञान तारा
द्रव्यना आश्रये छे, कोई बीजाना आश्रये नथी. अने रागद्वेषादि परिणाम पण तारा
पोताथी करेला छे, कोई बीजाए करावेला नथी.
अहा, आवी स्वाधीन वस्तु व्यवस्था,–कोई वस्तुनो बीजी वस्तुमां जरापण
प्रवेश ज ज्यां नथी, बहार ने बहार ज रहे छे, त्यां एक वस्तु बीजी वस्तुने शुं करे?
दरेक वस्तुमां अनंत शक्तिओ प्रकाशमान छे, परंतु वस्तुनी ते शक्तिओ ते
वस्तुमां ज रहे छे, अन्य वस्तुमां जरा पण जती नथी. चैतन्यना सम्यग्दर्शनादि
परिणाम थाय ते चैतन्यमां ज रहे छे, बहार जता नथी. ए ज रीते रागादि परिणाम
थाय ते पण पोतानामां ज रहे छे; ते कांई परमां जता नथी के परनुं कांई सुधारे–
बगाडे! पुद्गलकर्मवगेरेना परिणाम पुद्गलमां ज रहे छे, ते जीवमां जरा पण प्रवेशता
नथी; एटले ते जीवने शुं करे? कर्मो जीवनी बहार ज रहे छे, जीवना परिणाममां ते
कांई ज करतां नथी.
जीव नथी कर्मोमां कांई करतो, के कर्म नथी जीवमां कांई करतुं.
कर्मो जीवमां प्रवेशतां नथी, जीवना परिणाम कर्ममां प्रवेशता नथी.
जीवना बधाय परिणाम सदाय जीवना आश्रये ज थाय छे, केमके परिणाम
पोताना परिणामीना आश्रये ज थाय छे. अरे, परिणाम बीजा परिणामना आश्रये
पण नथी तो पछी परना आश्रये थाय ते वात तो क्यां रही? माटे भाई! द्रष्टि मुक
तारा द्रव्य उपर! तारा द्रव्य उपर द्रष्टि मुकतां तारो आत्मा पोते ज निर्मळ परिणामरूपे
परिणमी जशे.
वस्तु क्षणे क्षणे परिणम्या तो करे ज छे, परिणाम वगर एक क्षण पण जती
नथी. स्वद्रव्य उपर द्रष्टि करीने परिणमतो आत्मा सम्यग्दर्शनादि निर्मळ परिणामे
परिणमे छे. ने स्वद्रव्यने भूलीने पर उपर द्रष्टि करीने परिणमतो आत्मा अज्ञानभावे
परिणमे छे. ते