Atmadharma magazine - Ank 275
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९२ आत्मधर्म : २प :
सोनगढनो प्रौढ–शिक्षणवर्ग
अने विविध समाचार
[आंखे देख्यो अहेवाल]
श्रावण भादरवो एटले जाणे धर्मनी खास मोसम; दर वर्षे सोनगढमां
श्रावणमास दरमियान प्रौढ शिक्षणवर्ग चाले; आ शिक्षणवर्गमां भाग लेवा माटे आ
वखते मुख्य–मुख्य शहेरोथी त्रणसो उपरांत जिज्ञासुभाईओ आव्या हता; तेमांना घणा
खरा शास्त्रना अभ्यासी तेमज पोताना गामना अग्रगण्य जेवा हता. शिक्षणवर्ग खूब
उत्साहपूर्वक चाल्यो. आ शिक्षणवर्ग दरमियान सोनगढमां चारेकोर धर्ममय अनेरुं
वातावरण प्रसरी जाय छे. वहेली सवारे जुओ के बपोरे, सांजे जुओ के मोडी रात्रे,
ठेकठेकाणे जिज्ञासुओनी टोळी भेगी थईने कंई ने कंई तत्त्वचर्चा करती ज होय.
सवारमां चार वागे त्यां तो प्रवचनमंडप तत्त्वचर्चाथी गूंजी ऊठे.....कोई सामायिक
करता होय, कोई स्वाध्याय करता होय, कोई चर्चा करता होय. पांच वागे त्यां सेंकडो
जिज्ञासुओ जिनमंदिरमां दर्शन करता होय; साडा पांचना टकोरे गुरुदेवना दर्शन करीने,
सेंकडो जिज्ञासुओ फरवा जाय ने साथे साथे एक कलाक विविध चर्चामां वीते.
भिन्नभिन्न गामोना साधर्मीओना स्नेहभर्या मिलनना अनेरा द्रश्यो नजरे पडे.
बीजी तरफ छना टकोरे जिनमंदिरमां मंगल अभिषेकना घंटनाद गाजता होय ने
सेंकडो भाई–बहेनो उमंगपूर्वक जिनेन्द्रपूजननी तैयारी करता होय; उपरना भागमां
नेमप्रभुसन्मुख तालबद्ध आलापसहित पूजन चालतुं होय; ते पूरुं थाय त्यां तो नीचे
सीमंधरनाथसन्मुख समूहपूजन शरू थाय. कोई समवसरणमां ने कोई मानस्तंभ पासे
पूजन करे. बराबर पोणा आठ वागे पूजन पूरुं थाय ने तरत ज प्रवचनमंडपमां सभा
खीचोखीच भराई गई होय.......आठमां आठ मिनिटनी वार होय त्यां श्री
जिनवाणीनी समूहस्तुति शरू थाय, ने बराबर आठ वाग्याना टकोरा पडतां ज
मंगलाचरणपूर्वक गुरुदेवनुं प्रवचन शरू थाय. बधाय श्रोताओ एकतान थईने सूणवा
लागे. भूतार्थस्वभाव शुं ने तेनो अनुभव केम थाय? तेनी धारा एक कलाक सुधी
अविरतपणे गुरुदेव वरसावे. हिंदीभाषीने एम लागे के अमारी भाषामां बोले छे ने
गुजरातीओने एम लागे के