: भादरवो : २४९२ : आत्मधर्म : २७ :
सांजनी आ सभामां सौ राह जोईने बेठा होय के हमणां गुरुदेव विदेहनी कांईक मधुरी
वात करशे! ने पछी ए वात सांभळतां सौ हर्षित थाय. एक कलाकमां तो अनेक
प्रकारनी वात नीकळे. गामेगामना जिज्ञासुओ पोताना गामनी चर्चा करे ने पोतानो
प्रमोद व्यक्त करे.
सात वागे ने सभा ऊठे.....गुरुदेव एक कलाक एकान्तमां बेसे; बीजी तरफ
जिनमंदिर प्रकाशथी झगमगी रह्युं होय ने आरति उतरती होय. घी वगरनी नवी
जातनी आरती घणा जोई रहे. पछी कोई भक्ति करे, कोई चर्चा करे, कोई सामायिक
करे, कोई चिन्तन करे. जिनमंदिरनी अगाशीमां के ओसरीमां ने स्वाध्याय मंदिरना
चोकमां झाड नीचे ज्यां ज्यां बेठको होय त्यां सर्वत्र मुमुक्षुओ बेठेला देखाय. आठ वागे
रात्रिचर्चा (प्रश्नोत्तरी)नी सभा भराय. आखुं स्वाध्याय मंदिर भाईओथी भराई
जाय.....ने दिवसभरमां प्रवचनमां तथा शिक्षणवर्गमां आवेला सूक्ष्म विषयोनुं
पुनरावर्तन थाय, अनेकविध प्रश्नोत्तर थाय; ने तेना अनुसंधानमां अनेकवार जुना–
पुराणा विविध संस्मरणो गुरुदेव संभळावे. एक कलाक तो झडपभेर चाल्यो जाय....ने
चर्चा पूरी थाय....चर्चामां शुं आव्युं तेनी चर्चा करता करता सौ विखराय. दिवसभरनो
जाहेर कार्यक्रम पूरो थाय, परंतु जिज्ञासुओ हजी जंपे नहि ठेरठेर मंडळीओ भेगी थईने
११ वाग्या सुधी तत्त्वचर्चा करता होय. कोई नोंध करतुं होय, कोई वांचतुं होय.
सवारना चारथी शरू थयेलुं जागृत वातावरण ११ वाग्या सुधी चालु रहे.
शिक्षणवर्ग दरमियान वच्चे श्रावण वद पांचमथी नोम सुधी जयपुरना दोढसो
जेटला मुमुक्षुओनुं शिष्टमंडळ गुरुदेवने पधारवानी विनति करवा माटे बे स्पेश्यल
बसद्वारा सोनगढ आवेला, (साथे मध्यभारतना प्रधान श्री मिश्रिलालजी जैन
गंगवाल पण आव्या हता.) आ जयपुरसंघ आवतां वातावरण और उत्साहभर्युं
बनी गयुं हतुं. ने शेठ श्री ‘पूरनचंदजी’ गोदीका (–जेओ पं. श्री टोडरमल्लजी होल’
वगेरेनुं जयपुरमां आयोजन करी रह्या छे–) तेओए जयपुरना मुमुक्षुओनी वती
गुरुदेवने तथा संघना सर्वे साधर्मी भाई–बहेनोने जयपुर पधारवानी भावभीनी
विनंति करी हती. जयपुरमां पं टोडरमल्लजी–स्मारकभवननुं उद्घाटन तथा चैत्यालयमां
जिनबिंबवेदीप्रतिष्ठानुं मुहूर्त फागण सुद बीज (सं. २००३) नुं छे; अने हालना कार्यक्रम
प्रमाणे पू. गुरुदेवे त्यां माह वद दशम ने रविवारे पहोंचवानी स्वीकृति आपी छे.
जयपुरमां दोढसो जेटला मुमुक्षुओ सोनगढना वातावरणथी बहुज प्रसन्न थया
हता.....ने चार दिवस सुधी तो सोनगढनुं वातावरण एक मोटा यात्राधाम जेवुं देखातुं
हतुं. श्रावण वद सातमे मुंबईना भाईश्री माणेकचंद कस्तुरचंद तलाटी (दाहोदवाळा)
तथा तेमना धर्मपत्नीए सजोडे ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा लीधी हती. तथा रात्रे लव–कुशवैराग्यनो