Atmadharma magazine - Ank 275
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९२
छठ्ठी–सातमी गाथावडे ज्ञायकस्वभाव सांभळीने
शिष्यने सम्यक्त्व थवानुं अपूर्व वर्णन
आचार्यदेवे गाथा ६–७मां ज्ञायकभाव बतावतां कह्युं के जेमां अशुद्धता नथी,
जेमां पर्यायभेद नथी ने जेमां दर्शन–ज्ञान–चारित्रना गुणभेद नथी एवो शुद्ध ज्ञायक
आत्मा छे, ने ते शुद्धनयनो विषय छे. भेदरूप जे व्यवहार छे तेना अवलंबने
शुद्धआत्माने जणातो नथी. हवे आवा शुद्ध आत्माने जाणवाना जिज्ञासु शिष्यने प्रश्न
ऊठे छे के प्रभो! आवा परमार्थरूप शुद्धआत्मानो एकनो ज उपदेश देवो हतो, वच्चे
अनेक भेदरूप व्यवहार केम कह्यो? तेना उत्तरमां आठमी गाथामां आचार्यदेव कहे छे के
जेम आर्यभाषा नहि जाणनार कोई अनार्यने समजाववा माटे अनार्यभाषामां कहेवुं
पडे छे तेम परमार्थ एक स्वभावनो जे अजाण छे एवा जिज्ञासु शिष्यने ते स्वभाव
समजाववा माटे एक अभेद आत्मामां गुण भेद उपजावीने समजाव्युं के जे ज्ञान–दर्शन–
चारित्रस्वरूप छे ते आत्मा छे. त्यां शिष्य ते गुणभेदना विकल्पमां अटकतो नथी पण
आचार्यनो आशय समजीने अभेद आत्माने अनुभवमां ल्ये छे.
समयसारमां आचार्य भगवान जे शुद्धात्मानुं स्वरूप समजाववा मांगे छे ते
शुद्धात्मस्वरूप समजवानी जिज्ञासावाळो शिष्य अंतरमां कया प्रकारे समजी जाय छे, ने
ते समजता तेना अंतरमां ज्ञान–आनंदना केवा सुंदर तरंग ऊछळे छे–ए वात
अलौकिक प्रकारे आठमी गाथामां बतावी छे. जे शिष्य अंतेवासी थयो छे एटले के
समजवानो जिज्ञासु थईने ‘नजीक’ आव्यो छे तेने आचार्यदेव समजावे छे.
अंतेवासी:– शिष्य अंतेवासी छे, ते बे प्रकारे नजीक छे, एक तो शुद्धआत्मानुं
श्रवण करवा आव्यो छे एटले क्षेत्रथी अंतेवासी थयो छे; ने अंतरमां पात्रता प्रगट
करीने भावथी पण नजीक थयो छे, आवा अंतेवासी शिष्यने ‘दर्शन–ज्ञान–चारित्र’
स्वरूप आत्मा छे’ एम अभेदमां भेद उपजावीने परमार्थस्वरूपनो उपदेश आप्यो. त्यां
बताववो छे अखंड आत्मा, कांई भेद बताववो नथी. पण अभेदस्वरूप समजवा जतां
वच्चे एटलो भेद आव्या वगर रहेतो नथी.
आ समयसारनी पारायण छे. समयसार ए भरतक्षेत्रनुं महान भागवत छे;
पात्र थईने सांभळे ते भगवान थई जाय–एवी आ वात छे. भगवान पासेथी
सांभळीने कुंदकुंदाचार्यदेवे आ महान शास्त्र रच्युं छे, तेथी आ