: भादरवो : २४९२ आत्मधर्म : प :
जैन भगवतशास्त्र छे. स्वानुभवमां पहोंचवा माटेनी छेल्लामां छेल्ली वात आचार्यदेव
निकटवर्ती शिष्यने समजावे छे. शिष्यने मनमां एक ज धून छे के जेवो ज्ञायक
शुद्धआत्मा श्रीगुरु कहे छे तेवो अनुभवमां लेवो; बीजो कोई रोग मनमां नथी. आम
आत्मानी जिज्ञासावडे रागथी दूर थईने स्वभावनी समीप आव्यो छे. आवा शिष्यने
असाधारण धर्मो द्वारा एटले के ज्ञान–दर्शन–चारित्ररूप धर्मो द्वारा एक धर्मीनुं स्वरूप
समजावे छे. आमां जोके वच्चे सूक्ष्म गुणभेद आवे छे, पण ते गुणभेद अनुभवमां
नथी. तैयारीवाळो शिष्य ते भेदना अवलंबनमां न अटकतां अभेद आत्माने
अनुभवमां ल्ये छे.
आत्मा रागी छे के बंधनवाळो छे–एवी अशुद्धपणानी वात तो दूर रहो, ज्ञान
ते आत्मा–एवा गुण–गुणी भेदना लक्षे पण शुद्धात्मा अनुभवमां आवतो नथी. जो के
ज्ञान–दर्शन–चारित्रादि गुणोनो कांई आत्मामां अभाव नथी; पण अहीं शुद्धआत्मानो
अनुभव करवो ते प्रयोजन छे, ने गुणभेदना आश्रये ते प्रयोजन सिद्ध थतुं नथी; माटे
कहे छे के ‘ज्ञान ते आत्मा’ एम कहेतां ते भेद उपर जोईने तुं अटकीश नहि, कथनमां
भले भेद आव्यो पण तुं भेदनुं अवलंबन छोडीने अभेद आत्माने अनुभवमां लेजे.
आ वात द्रष्टांतथी समजावे छे: जेम कोई म्लेच्छने कोई ब्राह्मण एम आशीर्वाद
आपे के ‘स्वस्ति!’ त्यारे स्वस्ति एटले मारुं अविनाशी कल्याण थवाना आशीर्वाद
मने आपे छे एम नहि समजनारो ते म्लेच्छ ब्राह्मण उपर कंटाळो लाव्या वगर
बहुमान अने विनयपूर्वक तेनी सामे जिज्ञासाथी जोई रहे छे;–कोनी जेम? के मेंढानी
जेम; मेंढाने अनुसरवानी टेव छे तेम शिष्य पण गुरुए शुं कह्युं तेने अनुसरवा मागे
छे, एटले ते मेंढानी जेम आंखो फाडीने टगटग जोई रहे छे.
आंखो फाडीने टगटग अनिमेष नेत्रथी जोई रहे छे, तेमां न समज्यानो कंटाळो
नथी पण समजवानी तीव्र जिज्ञासा छे. आ कंईक मारुं हित बताववा मांगे छे एवो
विश्वास छे.
आंखो फाडीने:– समजवानी तीव्र जिज्ञासा छे एटले आंखो फाडीने जोई रहे
छे, तेम अंतरमां ज्ञानरूपी आंखो फाडीने एकाग्रताथी शिष्य समजवा मांगे छे. आंख
बंध नथी राखतो, बेदरकारी नथी करतो पण अनिमेषपणे, टमकार वगर आंखो फाडीने
टगटग जोई रहे छे. शिष्यजन आत्मा समजवा माटे ज्ञानचक्षु ऊघाडीने, एटले के
क्षयोपशमभावने ते तरफ जोडीने समजवा तैयार थयो छे.
पछी ज्यारे ते ज ब्राह्मणद्वारा, अथवा ब्राह्मण अने म्लेच्छ बंनेनी भाषा
जाणनारा बीजा कोई द्वारा स्वस्ति शब्दनो अर्थ ते म्लेच्छ समजी जाय छे के तरत तेना
नेत्रो आनंदमय आंसुओथी भराई जाय छे के अहो! आ तो मारा अविनाशी कल्याण माटे
आशीर्वाद आपता हता! तेम आत्मा ज्ञान–दर्शन–चारित्रस्वरूपी छे एम आत्मानुं स्वरूप