Atmadharma magazine - Ank 275
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९२
आचार्यदेव समजावे छे; ते समजनार जिज्ञासु शिष्यने अंतरमां पांचे लब्धि आवी जाय
छे; ते वात आचार्यदेवे आठमी गाथामां अलौकिक रीते बतावी छे.
सम्यक्त्वनी पांच लब्धि आमां आवी जाय छे
चैतन्यस्वभाव सांभळता श्रोताना अंतरमां अपूर्व हर्षोल्लास छे; ते आंखो
फाडीने जोई ज रहे छे एटले के समजवाने योग्य क्षयोपशमलब्धि थई छे, ने स्वरूप
समजवा माटे उपयोगने एकाग्र करे छे.
टगटग जोई रहे छे–तेमां समजवा माटेनी जिज्ञासाथी परिणामनी विशुद्धि थई
छे एटले विशुद्धिलब्धि थई छे.
‘दर्शन–ज्ञान–चारित्रस्वरूप आत्मा छे’ एवी आचार्यदेवनी देशना प्राप्त थई छे
एटले के देशनालब्धि थई छे.
प्रायोग्यलब्धि एटले अंदर कर्मस्थितिनी अल्पता तथा परिणामनी तेवी
योग्यता पण थई छे.
आम चारलब्धि तो थई छे; ने पांचमी करणलब्धि अनुभव करवाना काळमां
थाय छे ते पण बतावशे. तेमां सुंदर आनंदतरंग–बोधतरंग ऊछळे छे एम कहेशे.
उपदेश देनारा आचार्य केवा छे?
पहेला पांचमी गाथामां तो कह्युं हतुं के–अमारा समस्त आत्मवैभवथी अमे शुद्ध
आत्मानुं स्वरूप देखाडशुं. शुद्धात्मानुं प्रचुर संवेदन करनारा एवा परमगुरुओना
अनुग्रहपूर्वक अमने जे शुद्धात्मतत्त्वनो उपदेश मळ्‌यो तेनाथी अमारो आत्मवैभव
प्रगट थयो, एटले के जेवो शुद्धात्मा श्रीगुरुए कह्यो हतो तेवो अमने अनुभवमां
आव्यो, एवा स्वानुभवपूर्वक अमे शुद्धात्मानुं स्वरूप आ समयसारमां देखाडशुं.
उपदेश करनारा आचार्य केवा होय ते आमां आवी जाय छे. एक आचार्य
उपदेश आपीने चाल्या जाय तो शिष्य ते वात छोडी देतो नथी, पण धीरज राखी
रुचिने लंबावी बीजा आचार्य पासेथी समजे छे. “ते ज अथवा बीजा आचार्य तेने
परमार्थ समजावनारा मली ज जाय छे;” –आम कहीने श्रोतानी जिज्ञासानुं लंबाण
बताव्युं छे; तेनी जिज्ञासा अने समजवानी योग्यतानी तीव्रता छे एटले कदाचित
पहेला आचार्य चाल्या गया होय तो कोईने कोई बीजा उपदेशक ज्ञानी तेने मली ज जशे.
एनी पात्रता छे एटले जरूर तेने समजावनार पण मली ज रहे छे, –एवी ज संधि छे.
आचार्य तो स्वरूपमां झूलतां होय, एटले “दर्शन–ज्ञान–चारित्रस्वरूप आत्मा
छे” एटलो उपदेश आपीने तेमने विकल्प छूटी जाय अथवा अन्यत्र विहार करी जाय,
पण शिष्य पोतानी जिज्ञासा छोडतो नथी, पण जिज्ञासा लंबावीने बीजा आचार्य
पासेथी तेनो परमार्थ समजे छे–एवी तेनी पात्रता छे.
दर्शन–ज्ञान–चारित्रस्वरूप आत्मा छे एम कहेवामां कहेनारनो आशय भेद बताववानो