तेनो विरह नथी. जेम त्रिकाळने जाणनारा एवा
सर्वज्ञनो त्रणकाळमां कदी विरह नथी, तेम
आत्माना शुद्धस्वरूपनो कदी विरह नथी, द्रष्टि
खोलीने देख एटली ज वार छे; शुद्धनयरूपी आंख
ऊघाडीने जो, तो आत्मा शुद्धस्वरूपे प्रकाशी रह्यो
छे. आवा आत्माना अनुभवनी क्रिया अहीं
आचार्यदेवे समजावी छे. आ अनुभूतिनी क्रियामां
मोक्षमार्ग समाय छे.
समस्त संकल्प विकल्पनी जाळनो ज्यां विलय थई गयो छे–आवा आत्मस्वभावने
प्रकाशमान करतो थको शुद्धनय उदय पामे छे. जुओ, आवा आत्मानी अनुभूति अने
प्रतीत ते सम्यग्दर्शन छे.
छे, ते स्वभावने शुद्धनय प्रकाशे छे. परद्रव्यो, तेना भावो तथा तेना निमित्ते थता
रागादि विकारो ए बधाय आत्मस्वभावथी अन्य होवाथी परभावो छे; ते परभावोथी
तो जुदो; अने निजस्वभावथी परिपूर्ण,–एवो शुद्धआत्मा छे. आवा शुद्धात्मानो
अनुभव शुद्धनयवडे थाय छे. आने ज शुद्धजीवतत्त्व कहेवाय छे.
परमज्ञानस्वभावे वर्ततो जे भूतार्थस्वभाव, तेने अनुभवनारो ‘शुद्धनय