: आसो : २४९२ आत्म धर्म : ११ :
भूतार्थ’ छे एटले शुद्धनयवडे आवा शुद्धात्मानो अनुभव करवायोग्य छे. आवा शुद्धात्माना
अनुभवमां कोई संकल्प–विकल्प नथी. शुद्धआत्मामां तो संकल्प–विकल्प नथी, ने तेनो
अनुभव करनारी पर्यायमां पण संकल्प–विकल्प नथी. आवो अनुभव थयो त्यारे द्रव्यनुं
भान थयुं. आवो शुद्धअनुभव ते कर्मनो क्षयकरणशील छे, रागादिनो पण क्षय करनारो छे.
शरीरादि नोकर्म, मोहनीयादि द्रव्यकर्म के रागादि भावकर्म ए त्रणेथी भिन्न शुद्धात्मअनुभूति
छे. अनंत गुणोथी पूर्ण भरेलो एवो आत्मस्वभाव ते अनुभूतिमां प्रगट थाय छे. तेमां कोई
भेद नथी, विकल्प नथी. आवी अनुभूतिमां ज सुख छे. बीजे क्यांय सुख नथी. सम्यग्दर्शन
पण आवी अनुभूतिथी ज प्रगटे छे, ने सम्यग्ज्ञान पण आवी अनुभूतिथी ज प्रगटे छे. ए
वात १४मी गाथामां आचार्यभगवान अलौकिक रीते समजावे छे–
अबद्धस्पृष्ट, अनन्य ने जे नियत देखे आत्मने,
अविशेष, अणसंयुक्त, तेने शुद्धनय तुं जाणजे.
शुद्धनय केवा आत्माने देखे छे? केवा आत्मानी अनुभूतिथी सम्यग्दर्शन थाय
छे? ते अहीं बतावे छे. अबद्ध अने अस्पृष्ट एटले कर्मथी बंधायेलो नहि ने कर्मथी
स्पर्शायेलो नहि; पर्यायोना अनेक आकाररूप जे अन्य–अन्य पणुं तेनाथी रहित एवो
अनन्य एक चैतन्य आकाररूप; वधती–घटती अवस्थारूप जे अनियतपणुं, तेनाथी
रहित नित्यस्थिर चैतन्यस्वभावमां नियत एकाकार; विशेषो एटले गुणना भेदो
तेनाथी रहित अविशेष, तथा परना संपर्कथी थतुं जे दुःख तेनाथी रहित एकान्त
बोधबीजस्वभावरूप एवो असंयुक्त, आवा विशेषणोस्वरूप जे आत्मा, तेनो अनुभव
शुद्धनयवडे थाय छे, शुद्धात्मानी अनुभूति कहो, शुद्धनय कहो के आत्मा कहो बधुं अभेद
छे. पर्यायवडे अनुभव कर्यो त्यारे आवो आत्मा प्रकाशमान थयो.
शुद्ध आत्माने आ अबद्ध वगेरे पांच विशेषणो कह्या ते पण कांई पांच भेद
बताववा माटे नथी; एकसाथे पांचे भावोथी अभेद आत्मा शुद्धपणे अनुभवमां आवे
छे. पहेलां अबद्धस्पृष्ट जाणे पछी अनन्यपणुं जाणे–एम कांई भेद नथी, शुद्धनयना
अनुभवरूप आत्मामां आ बधा विशेषणो एकसाथे समाई जाय छे. शुद्धनय अने तेना
विषयरूप शुद्धआत्मा बंनेने अभेद करीने वात करी छे; केमके शुद्धनयनी अनुभूतिमां
कोई भेद भासतो नथी.
आ अनुभूति शुद्ध ज्ञानचेतनारूप छे; कर्मचेतना के कर्मफळचेतना तेनामां नथी,
साधकने ते होय भले पण अनुभूतिथी ते बहार छे. पहेलां आवी उपयोगरूप
अनुभूति थाय छे ते वखते सम्यग्दर्शन थाय छे. पछी बहार आवे त्यारे पण लब्धरूपे
आवी अनुभूति धर्मीने वर्ते ज छे. चोथा गुणस्थानथी ज धर्मीने शुद्ध ज्ञानचेतनानी
अनुभूति शरू थई गई छे. ते अनुभूति आनंदचेतनारूप छे. आत्मानी अनुभूतिमां
घणी गंभीरता छे. व्यवहारनी पर्याय (रागादि पर्याय) तेमां समाती नथी, ते तो