: आसो : २४९२ आत्म धर्म : २१ :
अहा, ए द्रश्यो केवा हशे!! –के ज्यारे नानकडा वैरागी राजकुमारो रजा मागे ने
धर्मी माता आवी रीते तेने रजा आपती होय!
अहीं एक प्रसंगने याद करीने गुरुदेवे कह्युं: एक माणसने दीक्षा लेवानी भावना
जागी; तेनी स्त्री तथा माता वगेरे रुए ने रजा न आपे. त्यारे दिक्षानी भावनाथी ते
माणसने खूब रोवुं आव्युं. तेनी मा आ जोई न शकी, ने कह्युं–भाई, तुं रडीश मां! हुं
तने दीक्षा लेवानी रजा आपीश. –आवा प्रसंगने याद करीने गुरुदेव घणा वैराग्यथी
एक कडी बोल्या. जेमां लगभग आवा भावो हता के–
‘मा, जो तुं रजाआपे...तो संयमना मार्गे संचरुं.’
(सुख–दुःखना स्वरूपसंबंधी चर्चा)
ज्ञानस्वरूपी आत्मा पोते सुखस्वरूप छे; तेने बहारना आश्रये थता रागादि
आकुळभावो ते दुःख छे.
संयोगथी दुःख के संयोगथी सुख माननाराने आत्माना ईन्द्रियातीत
सुखस्वभावनी खबर नथी. सातमी नरकमां जे दुःख छे ते दुःख संयोगोनुं नथी पण
पोताना विभावनी आकुळताथी ज ते जीव दुःखी छे. जेम दुःख संयोगथी नथी तेम सुख
पण कोई संयोगथी नथी. मिथ्यात्वादि भावो ते दुःखरूप छे ने सम्यक्त्वादि भावो
सुखरूप छे. सुख ते स्वभाव छे, दुःख ते विभाव छे, ने संयोग तो बंनेथी भिन्न छे.
बहारना संयोगथी जे दुःख माने छे, ते सुख पण बहारना संयोगथी ज मानशे,
एटले संयोग वगरना अतीन्द्रिय सुखनी श्रद्धा तेने नहि थाय. द्रष्टांत–बटेटानी एकेक
कणिमां अनंता जीवो छे, तेओ मोहभावनी तीव्रताथी महा दुःखी छे. त्यां धगधगती
सोय तेमां भोंकाय ने अनंत जीवो मरी जाय के दुःखी थाय,–त्यां ते सोयना संयोगने
कारणे ते जीवोने दुःख छे–एम संयोगथी दुःख माननार जीव दुःखना साचा स्वरूपने
ओळखतो नथी. दुःख एने संयोगनुं नथी, एना ऊंधा भावनुं दुःख छे. (ए ज प्रमाणे
सातमी नरक वगेरेमां पण समजवुं.)
तेवी ज रीते सुख पण संयोगनुं नथी. अतीन्द्रिय सुख आत्माना स्वरूपमां छे. ते
अतीन्द्रियसुखनो स्वाद जे चाखे ते ज सुखना ने दुःखना साचा स्वरूपने ओळखी शके; ने
संयोगथी सुख–दुःख ते माने नहि. अज्ञानीने तो सुखनीये खबर नथी ने दुःखना पण