पहेलो माणस कहे–सांभळ भाई! मारी तो आंख जड–चेतननी भिन्नतारूप
अतीन्द्रियस्वरूपने पण जाणी ल्ये एवी बळवान छे! नबळी आंख तो तारी छे के जे
यथार्थ वस्तुस्वरूपने जोई शक्ती नथी. जड शुं, चेतन शुं, बंनेनी भिन्न भिन्न क्रियाओ
निर्दोष छे. सोय शुं दोरो शुं, आत्मा शुं,–ते दरेकनी भिन्नभिन्न क्रियाओ शुं, तेने तारी
आंख देखती नथी, अज्ञानदोषथी दुषित तारा चक्षु जड–चेतनने भिन्नभिन्न देखी
शक्ता नथी ने द्रष्टिदोषथी एकबीजामां भेळवी दे छे; तेथी तारा चक्षु ज नबळा छे,
मारा नहि.
हुं देखी शकतो न हतो...हवे मारी आंख ऊघडी, ज्ञानचक्षु खुल्या, ने जडथी भिन्न मारुं
ज्ञानस्वरूप मने देखायुं. हुं तो ज्ञान छुं. ‘खरेखर, सोयमां दोरो हुं परोवी शक्तो नथी.’
–ए जडनी क्रियानो कर्ता हुं केम होउं.?
एक कहे–सूर्य मरी जाय तो शुं थाय?
बीजो कहे–तो चन्द्र तो छे ने!
चंद्र मरे तो? ...........तारा तो छे ने!
तारा मरे तो? .........दीवो तो छे ने!
दीवो य न होय तो? ......तो आ स्वयंप्रकाशी आत्मा तो छे ने!
‘स्वयंप्रकाशी आत्माने बीजा प्रकाशनी क्यां जरूर छे?”
“आत्मा कदी मरतो नथी,” “आत्मा अविनाशी छे.”
सम्यग्ज्ञानदीपिकाना आधारे उपरनी वात याद करीने थोडीवारे गुरुदेवे अंदरनी
अनुकूळता छे ने