Atmadharma magazine - Ank 275a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 27 of 45

background image
: २४ : आत्म धर्म : आसो : २४९२
आजीविका वगेरेनो योग छे. पण कदाचित ए बंधु वगेरेनो वियोग थई जाय तो पछी
तमारुं कोण? ने ते वखते तमारा मनमां शुं थाय? ने तमने केवा भाव आवे? एम
एकवार परीक्षा माटे एक ज्ञानीने पूछयुं. त्यारे गंभीर वैराग्यथी ते उत्तर आपे छे के–
तो मने एम थाय के अरे, एमने आवो मनुष्यभव मळ्‌यो, आत्माना लाभनो आवो
अवसर मळ्‌यो, ने आत्मानो लाभ लीधा वगर चाल्या गया!’ आटलुं कह्या पछी
गुरुदेवे घणा भावथी कह्युं–जुओ ज्ञानीने अंदर आत्मानी धून आडे बहारनी दरकार
नथी. आत्माना विश्वास आडे बहारनी चिन्ता नथी के मारुं शुं थशे! एम घणा प्रकारे
ज्ञानीनी निस्पृह आत्मार्थीतानो घणो महिमा कर्यो हतो. (गुरुदेवे तो नामठाम सहित
विगतथी वात करी हती. पण अहीं मात्र तेना भावोनो उल्लेख कर्यो छे.)
(अणधारी आवी सरस चर्चा नीकळतां गुरुदेवनेय प्रसन्नता थई, ने कह्युं के
आवी चर्चा क्यारेक ज नीकळे छे. श्रोताओ पण ते सांभळीने प्रमोदित थया; कोईने तो
वैराग्यरसना आंसु पण आवी गया. ते विरल चर्चानो नमूनो अहीं आप्यो छे: बाकी
सीधा श्रवणनी तो वात कोई जुदी छे. वैराग्यप्रेरक अने तत्त्वज्ञानथी भरेली सुंदर चर्चा
मुमुक्षुओना जयनादपूर्वक पूरी थई.)
जय जिनेन्द्र
“स्वानुभवनो आनंद”
थोडा दिवस पहेलां एकवखत
प्रवचनमां स्वानुभव संबंधी सरस आनंदकारी
वात आवी; तेना अनुसंधानमां त्रीस वर्ष
पहेलांनी आत्मिकचर्चा गुरुदेवे याद करी; ने
प्रवचन पूरुं थया पछी घणा प्रमोदथी गुरुदेव
नीचेनुं वाक्य बोल्या–
“ज्ञाननी लीली वाडीमां आत्मा आनंदनी रमत रमे छे.”
जाणे के एक वाक्यनी गंभीरतामां
गुरुदेव ज्ञानीना स्वानुभवनुं घणुं घणुं वर्णन
व्यक्त करता होय एम लाग्युं.