Atmadharma magazine - Ank 275a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९२ आत्म धर्म : २५ :
वांचको साथे वातचीत
(सर्वे जिज्ञासुओनो प्रिय विभाग)
आ विभाग ए वांचकोनो विभाग छे; आमां व्यक्त थता
विचारो ए आपणा जिज्ञासु पाठकोना विचारो छे; ‘आत्मधर्म’ द्वारा
पू. गुरुदेवनो उपदेश प्राप्त करीने जिज्ञासुपाठकोने जे हर्षोल्लास थाय
छे अने गुरुदेव प्रत्ये जे भक्ति–बहुमाननी उर्मिओ जागे छे ते
यत्किंचित तेओ आ विभागद्वारा व्यक्त करे छे. आवेला सेंकडो
पत्रोमांथी बेचार पत्रो अहीं प्रगट करीए छीए; तेमज
जिज्ञासुपाठकोना योग्य प्रश्नोनुं समाधान पण आ विभागद्वारा
करवामां आवे छे. तेथी आ विभाग सौने प्रिय छे.
* सरदारशहेरथी श्री दीपचंदजी
शेठियाना पौत्री प्रतिभाबेन (उमर वर्ष ९)
लखे छे के–हमारे नारायणपरिवारमें सूर्योदयसे
पहले नित्य नीम्न पदसे बच्चोंको सावधान
(जागृत) किया जाता है–
मोहनींदसे अब तो जगीए,
क्या सूते बेहालजी!
कल्पितसुखकी दुःखमय घडियां,
अन्दरका क्या हालजी!
स्व–पर समझने अब ही लगीए,
हेरा फेरी टालजी,
आनंदघनकी अमृत घडीयां,
आतमको संभालजी......
* प्रश्न:– अंजनासतीए एवा क्या कर्म
कर्या के आटलुं बधुं दुःख पड्युं? (नं. ८१)
उत्तर:– पूर्व भवमां पटराणीपदना
अभिमानथी तेणे जिनेन्द्रदेवनी प्रतिमानो
अनादर कर्यो हतो ने धर्मनी निंदा करी हती,
तेथी तेने आवुं दुःख पड्युं. (विशेष जाणवा
माटे बे सखी पुस्तक पानुं ३७ थी ४१
वांचो)
गाना है, गाना गाना तो–
तुम चेतनके ही गुण गाना।
पथ पथिक यदि बनना चाहो,
निजपथ पर निजको ले जाना।
* प्रश्न:– मोहमयी मुंबईनगरीनो मोह
छोडवा माटेनो सरळ मार्ग बतावशो? (नं.
प८२)
उत्तर:– जी हा! सोनगढना संतोनी
शीतळछायामां वसवुं एटले मुंबईनो मोह छूटी
जशे.