Atmadharma magazine - Ank 275a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्म धर्म : आसो : २४९२
प्रश्न:– संसारदशामां न होय ते क्यो
भाव? (नं ४७)
उत्तर:– संसारदशामां पांचे भावो
संभवी शके छे.
प्रश्न:– मोक्षदशामां न होय ते क्यो
भाव?
उत्तर:– उदय, उपशम, क्षयोपशम ए
त्रण भाव मोक्षमां न होय; क्षायिक अने
पारिणामिक ए बे भाव होय.
आत्मधर्मना गतांकमां पृ. ३९ लाईन
६ मां सं. १९२४ छपायेल छे. तेने बदले सं.
२०२४ वांचवुं. ध्यान खेंचनार भाईनो
आभार!
प्रश्न:– आपणे कई वस्तुनो त्याग
करवो जोईए! (नं. १४३प)
उत्तर:– मिथ्यात्वनो अने रागद्वेषनो.
प्रश्न:– मोक्षनी व्याख्या शुं?
उत्तर:– दुःखथी संपूर्ण छूटकारो, ने
संपूर्ण सुखनी प्राप्ति. (अथवा ‘मोक्ष कह्यो निज
शुद्धता.’)
प्रश्न:– चारित्र एटले शुं? धर्मनी द्रष्टिए
तेनुं शुं महात्म्य छे? (नं. १४पप)
उत्तर:– पोताना ज्ञानदर्शनस्वरूप
आत्मामां चरवुं ते चारित्र छे; ते धर्म छे; ते
मोक्षनुं साक्षात् कारण छे. ए रीते चारित्रनो
अपार महिमा छे. चारित्रधारी मुनिवरो
महानपूज्य परमेष्ठी छे. पण, आवुं चारित्र
सम्यग्दर्शन वगर होतुं नथी. माटे धर्मनुं मूळ
सम्यग्दर्शन कह्युं छे.
घणा बाळको लखे छे के बालविभाग
चालु थया पछी अमे आखुंय आत्मधर्म वांचीए
छीए ने अमने बहु मजा पडे छे; घणुं नवुं नवुं
जाणवानुं मळे छे. बंधुओ! तमे सौ उत्साहथी
भाग लई रह्या छो ते जाणीने सन्तोष; गुरुदेवनी
छायामां हजी आथी पण विशेष आगळ वधो.
बेंगलोरथी स. नं. ७प४ लखे छे–
“जबसे बालविभाग चालु हूआ है तबसे अंक
बराबर पढता हूं और दिनरात ऐसी अभिलाषा
है कि वो दिन कब आयेगा–जब में पूज्य
गुरुदेवके पास प्रवचन मंडपमें (याने भावी
तीर्थंकरके समवसरणमें) बैठकर धर्ममें आगे
बढूं!–ईस अपूर्व अवसरकी राह देख रहा हूं.”
भाई! रवीन्द्रकुमार! तमारा ब्हेन
चंद्रलेखा (आपणा बालविभागनासभ्य नं.
२२प) तेमणे आठ दिवसना उपवासना पारणा
प्रसंगे बालविभागने खास याद करीने रूा.
११) भेट मोकल्या ते मळ्‌या छे. ते बदल
आगळ वधीने वीतरागी–देव–गुरु शरणे ते
आत्महित पामे एम ईच्छीए छीए.
प्रदीपभाई जैन, राजकोट
(वीरजीभाईना प्रपौत्र) तमारा वती तमारा
भाईए जे पत्र लख्यो तेमां तमारी लागणी
जाणीने वैराग्य आवे एवुं छे. तमे भले लखी
शक्ता नथी पण तमारी लागणी जोईने अमे
तमने बालविभागना परिवारमां दाखल कर्या
छे ने तमारो सभ्य नं. १प६३ छे. भाई,
शरीरनी स्थिति गमे तेवी होय, पण आवुं
मानवपणुं ने आवुं जैनकूळ मळ्‌युं ते मोटा
भाग्यनी वात छे. तेमां तमारा कुटुंबीजनो
तमने धर्मना संस्कार रेडीरेडीने तमारुं
मानवपणुं सफळ बनावे जेथी फरीने आवो
दुःखदायी अवतार न मळे एम ईच्छीए छीए.
उमराळाथी स. नं ७६९ लखे छे–
“अहीं जिनमंदिरमां तथा जन्मधाममां दर्शन
करवा रोज जईए छीए. पण जो अत्रे
पाठशाळा चालती होय तो घणो ज आनंद
आवे. जामनगरनो दि. जैन संघ अत्रे आवेल
ने घणा ज उल्लासभावथी भक्ति करी हती.”
सोनगढथी पगे चालीने बीजा कोई
गामना दिगंबर जिनमंदिरमां भगवानना दर्शन
करवा जवुं