Atmadharma magazine - Ank 275a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९२ आत्म धर्म : २७ :
होय तो उमराळा (गुरुदेवनुं जन्मधाम) सौथी
नजीक पडे; त्यां सीमंधर भगवान बिराजे छे.
सोनगढथी भावनगर १८ माईल छे,
पालीताणा १४ माईल छे ने उमराळा तो फक्त
११ माईल (साडापांच गाउ) दूर छे. पहेलां
गुरुदेव ज्यारे पादविहार करता त्यारे
सोनगढथी (धारूका थईने) उमराळा गुरुदेव
साथे चालीने जवानी अमने बहु मजा पडती.
प्रश्न:– सम्यग्दर्शन प्राप्त करवुं छे, तो
पहेलां मारे शुं करवुं? (१प८८)
उत्तर:– सम्यग्द्रष्टि जीवोने ओळखीने
तेमनो सत्समागम करवो.
एक सभ्य पूछे छे के कोईक प्रश्नोनो
जवाब न आवडतो होय तो शुं करवुं?–जवाब
न आवडतो होय तो मुंझावुं नहि पण वडीलोने
पूछीने शीखी लेवुं; ने पछी पोताना हाथे ते
जवाब लखवो.
प्रश्न:– पांच पांडव अत्यारे क्यां छे?
(नं. १००प सुरेन्द्रनगर)
उत्तर:– युधिष्ठिर भीम अने अर्जुन ए
त्रण पांडवो सिद्धालयमां (सिद्धक्षेत्र शत्रुंजयना
बराबर उपरना भागमां) बिराजे छे; ने नकुल
तथा सहदेव ए बे स्वर्गमां छे.
कटनी (मध्यप्रदेश) ना श्री स. सि.
धन्यकुमारजी शेठ पोताना सोनगढना
अनुभवनुं वर्णन करतां अंतमां लखे छे के–
“मेरी कल्पनामें तो यह आया कि
सर्वार्थसिद्धि के देवोमें भी जो अध्यात्म चर्चामें
३३ सागर बीत जाते है वह सर्वथा सत्य है;
यह (सोनगढ) नगरी तो उसी का नमूना है,
ईसे हम अब “सर्वार्थसिद्धि पुरी” कहें तो
अत्युक्ति नहीं होगी.” (जैनसन्देशमांथी)
श्री दिगंबर जैन विद्यालय, रामगढ
(जयपुर) तरफथी श्रीमान ईन्द्रचन्द्रजी जैन
मारफत रूा. ११००) श्री जैन स्वाध्यायमंदिर
ट्रस्ट उपर बालविभागना बाळकोने कोई
पुस्तक भेट आपवा माटे आव्या छे...ते बदल
तेमने धन्यवाद. (बालविभाग तथा आत्मधर्म–
विकास माटे आवेल परचुरण रकमोनी यादी आ
अंकमां आपी शकाई नथी.)
सूचना–
आत्मधर्मना जिज्ञासुपाठको तथा
बालविभागना बाळको आ विभागमां खूब
रस लई रह्या छे ने तत्त्वजिज्ञासापूर्वक प्रश्नो
पूछी रह्या छे. आप सौ प्रश्न पूछो ने धर्ममां रस
ल्यो ते जरूर प्रशंसनीय छे; परंतु आपणा
आत्मधर्मनी शक्ति मर्यादित छे, एटले खास
सूचना करवानी के एक साथे एकथी वधु प्रश्नो
न मोकलशो.
आपे पूछेला प्रश्ननो जवाब न आवे
त्यां सुधी (अथवा त्रण मास सुधी) नवा प्रश्नो
न मोकलशो.
बंने त्यांसुधी आपना घरना वडीलोने
पूछीने समाधान मेळवी लेशो.
जय जिनेन्द्र