Atmadharma magazine - Ank 275a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्म धर्म : आसो : २४९२
नांखीने आत्माने पवित्र करवो ते उत्तम शौचधर्म छे.
(प) उत्तम सत्य धर्मनुं स्वरूप
भगवान जिनेन्द्रदेवनी वाणीमां जे वस्तुस्वरूप कह्युं छे ते सत्य छे, तेवा
वस्तुस्वरूपने जाणवुं, अने ते जिनसूत्रअनुसार ज वचन कहेवा, ते उत्तमसत्यधर्म छे.
भगवाने कहेला सत्य वस्तुस्वरूपने (जड–चेतननी भिन्नता वगेरेने जे जाणे पण नहि
ने विपरीत माने तेने तो सत्यधर्मनी आराधना होती नथी, ज्यां ज्ञान ज खोटुं छे त्यां
सत्यधर्म केवो?
भगवाने स्फटिकनी जेम आत्मानी निर्मळताने धर्म कह्यो छे. ‘जिन सोही है
आतमा, अन्य होई सो कर्म–शुद्ध आत्मानो स्वभाव जेमां कर्मकलंक नथी–रागद्वेष
नथी, एवा आत्मानी आराधनाने भगवाने धर्म कह्यो छे. ते धर्मनुं प्रतिपादन करनारी
वाणी ते ज सत्य वचन छे. एनाथी विरूद्ध जे कहे, जे रागादि कषायभावोने धर्म
मनावे–ते सत्यवचन नथी. रागथी धर्म माननारने वीतरागमार्गमां सत्यधर्मनी
आराधना होती नथी. मुनिवरो पोते तो अंतरमां चिदानंद स्वभावमां एकाग्रतावडे
वीतरागीसत्यधर्मने आराधी रह्या छे, ने वाणीमां पण एवा वीतरागभावरूप
सत्यधर्मनुं प्रतिपादन करे छे. गमे तेवी प्रतिकूळतामांय धर्मनुं स्वरूप विपरीत कहे नहि.
एकला लौकिकमां सत्य बोले पण सत्यधर्मनुं स्वरूप जाणे नहि तो तेने सत्यधर्म होतो
नथी.–आम सत्य वस्तुस्वरूप जाणीने सत्यधर्मनी आराधना करवी जोईए.
(६) उत्तम संयमधर्मनुं स्वरूप
साक्षात् मोक्षमार्गना आराधक एवा मुनिवरोने उत्तमक्षमादि दश धर्मो होय छे तेनुं
आ वर्णन छे. आजे छठ्ठो दिवस उत्तम संयमधर्मनो छे. मुनिवरोने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्र वडे एवी संयमदशा प्रगटी गई छे के एक तरणांने पण छेदवानी वृत्ति तेमने
होती नथी. एकेन्द्रियादि कोई जीवने हणवानी वृत्ति थती नथी, ए रीते जीवोनी रक्षामां
तत्पर छे. अंदरमां कषायवडे आत्मानी हिंसा थाय छे, एनाथी आत्मानी रक्षा करवी
एटले पोते पोताना स्वरूपमां एकाग्रतारूप वीतरागभाव प्रगट करवो ते साचो संयमधर्म
छे. ने आवो संयमधर्म होय त्यां कोईपण जीवनुं अहित करवानी वृत्ति होय नहि, तेमज
ईन्द्रियविषयोनो राग होय नहि. एने संयम कहेवाय छे. आ संयम कांई दुःखरूप नथी, ए
तो वीतरागी आनंदरूप छे. पहेलां तो कषायोथी अत्यंत भिन्न आत्माने जाण्यो छे, एटले
के सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञानपूर्वक संयमधर्म होय छे. धर्मी गृहस्थने पण संयमधर्मनी
भावना होय छे. तथा त्रसहिंसादि तीव्र कषायना परिणामो तेने होता नथी.
(७) उत्तम तपधर्म
चारित्रनी आराधनामां उग्रता करवी तेनुं नाम तप छे. सम्यग्दर्शन अने ज्ञान
उपरान्त उपयोगने उग्रपणे स्वरूपमां एकाग्र करवानो उद्यम