स्वतंत्र प्रभुताथी ज रह्या छे,–नहि के उपर धर्मास्तिकायनो अभाव होवाने लीधे
पराधीनपणे त्यां अटकी जवुं पड्युं. अरे, सिद्धप्रभुमां पण जेने पराधीनता देखाय ते
जीव आत्मानी स्वतंत्र प्रभुताने कई रीते प्रतीतमां लेशे? बापु! आत्मानी प्रभुताना
स्वतंत्र प्रतापने कोई हणी शकतुं नथी. द्रव्य–गुण के पर्याय त्रणेमां आवी प्रभुता छे.
पर्यायमां ते प्रगटे. प्रभुताथी विमुख थयो एटले पर्यायमां पामरता थई. छतां शक्तिमां
तो प्रभुता भरी ज छे. पामरता सेवीने तारी प्रभुताने तें संताडी राखी छे. प्रभुताने
प्रतीतमां लईने तेनुं सेवन कर तो पर्यायमां सर्वज्ञतारूप प्रभुता ऊघडी जाय, ने तारो
आत्मा अखंड प्रतापवाळी स्वतंत्रताथी शोभी ऊठे.
समूह छे तेवडो आत्मा छे. आत्मा पोताना अनंत गुण–पर्यायोमां व्यापक छे तेने बदले
परमां व्यापक माने छे एटले ते अनुभवमां आवतो नथी. परथी आत्मा भिन्न छे
पण तेने जाणनारुं जे ज्ञान छे तेनाथी अभिन्न छे. ज्ञान अने तेनी साथेना आनंद–
प्रभुता वगेरे अनंत गुणोमां आत्मा अभिन्न छे. आवा आत्मा उपर नजर नांखता
परम चैतन्यनिधान एक क्षणमां प्रगटे छे. अहा, आवुं चैतन्यनिधान पोतानी ज पासे
छे पण जगत तेने बहारमां शोधे छे.–जाणे के रागमांथी मारा गुणनुं निधान प्रगटशे?
पण भाई, तारा निधान रागमां नथी, चैतन्यमां तारा निधान भर्यां छे. तारा
निधाननुं माहात्म्य करीने तेमां नजर कर. बधाने जाणनारो पोते पोतानुं माहात्म्य
भूलीने, रागने अने परने माहात्म्य आपे छे के, आ पदार्थ सारां; –पण एने जाणनारुं
पोतानुं ज्ञान सारूं छे–एम अनुभवमां नथी लेतो, एने खबर नथी के हुं तो ज्ञान छुं,
ने आ रागादि भावो तो चेतन वगरना छे, तेमनामां स्व–परने जाणवानो स्वभाव
नथी. पोताना ज्ञानस्वभावथी छूटीने अज्ञानी ‘पर मारां, राग हुं’ एम अनुभवे छे.
भाई, परद्रव्य शरीरादि कांई तारा ज्ञानमां वळग्या नथी, छूटा ज छे, पण ‘आ मारां’
एवी भ्रमणा करीने तुं तेने वळगे छे–ममता करे छे, तेथी परिभ्रमण ने दुःख छे. तारी
अनंतगुणनी प्रभुताने जाण तो ए परिभ्रमण ने दुःख मटे.