Atmadharma magazine - Ank 277
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४९३ आत्मधर्म : प :
प्रतापवंती प्रभुता
प्रभुत्वशक्तिना प्रवचननी प्रसादी अहीं आपी छे.
दीवाळीनी बोणीमां, गुरुदेवे आपेली आ प्रभुता सौने गमशे.
ज्ञानमात्र आत्मा अखंडित प्रतापवाळी स्वतंत्रताथी शोभे छे–एवी तेनी
प्रभुता छे. ज्ञानस्वरूप आत्माने ओळखतां आवी प्रभुतानुं पण भेगुं भान थाय छे.
आत्मानी प्रभुता एवी छे के तेने कोई तोडी शके नहि, के पराधीन बनावी शके नहि.
आवी प्रभुताना भानवडे पर्यायमां प्रभुता प्रगटे छे.
जगतमां राजा–महाराजानो प्रताप तो एनाथी मोटा बीजा राजावडे खंडित थई
जाय छे; जुओने, भरतचक्रवर्ती जेवानो प्रताप पण बाहुबलि वडे खंडित थई गयो; ए
तो पुण्यनो प्रताप छे, ए कांई अखंडित प्रताप नथी. आ चैतन्यराजा अनंतगुणनो
चक्रवर्ती, तेनो प्रताप कोईथी खंडित थाय नहि, तेनी स्वतंत्रताने कोई लूंटी शके नहि.
आवी अनंतगुणनी प्रभुता–शोभा आत्मामां भरी छे. एक प्रभुत्वगुणे सर्व गुणोमां
प्रभुता आपी छे. एटले बधा गुणो अखंडित प्रतापवाळी स्वतंत्रताथी शोभी रह्या छे.
रागवडे गुणनी प्रभुता खंडित थती नथी पण गुणनी निर्मळ पर्याय प्रगट करीने रागने
खंडखंड करी नांखे एवी दरेक गुणमां ताकात छे. प्रभुत्वने लीधे आत्माना सर्व गुणोमां
प्रभुता छे, ने तेना परिणमनमां रागनो अभाव छे. एनो अभाव ज छे पछी ते
आत्मानी प्रभुताने खंडित करे ए वात क्यां रही?
जुओ, आ आत्मानी प्रभुता! अहा, आत्मामां प्रभुता भरी छे तेनुं अनंत
माहात्म्य छे. आवा आत्मामां द्रष्टि करतां पर्यायमां प्रभुता प्रगटे छे. दुनियामां एवो
कोई दुश्मन नथी के जे आत्मानी प्रभुताने तोडी शके. सातमी नरकना जीवने पोतानी
प्रभुताना अवलंबने जे सम्यग्दर्शन प्रगट्युं छे, त्यांनी अनंती प्रतिकूळतामां एवी
ताकात नथी के सम्यग्दर्शननी जे प्रभुता प्रगटी छे तेने तोडी शके, दरेक गुणनी
निर्मळपर्यायमां प्रभुता छे, एटले के पोताथी स्वतंत्रपणे ते शोभे छे. कोई संयोगने
लीधे तेनी शोभा छे के रागने लीधे तेनी शोभा छे–एम नथी. ज्ञाननी प्रभुतामां
ज्ञानावरणकर्मनो अभाव छे, तेनी प्रभुताने ज्ञानावरणकर्म हणी शके नहि.