Atmadharma magazine - Ank 277
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४९३ आत्मधर्म : ७ :
यथार्थरूपे कर्यो नथी. अहीं अनंतगुणनिधान बतावीने आचार्यदेव कहे छे के–भाई जो
तारे शांति ने आनंदनो अनुभव जोईतो होय तो, ने स्वतंत्र सुखनो राह–पंथ जोईतो
होय तो, ज्ञानवडे जाणनारने जाण. बहारमां जे देखाय छे ते तुं नथी, जे देखनारो छे ते तुं
छो. तारे लईने राग के शरीर नथी, तारे लईने तो ज्ञान छे, एटले के ज्ञान ज तारुं कार्य छे.
आत्मा जाणनार छे छतां पोते पोताने केम नथी जाणतो? ज्ञानने स्वसन्मुख
करतो नथी तेथी आत्मा जणातो नथी. अनंत शक्तिनो परमेश्वर छे तो पोते ज, पण
पोते पोताने भूली गयो छे. ३८ मी गाथामां कह्युं हतुं के–जेम कोई मूठीमां राखेला
सुवर्णने भूली गयो होय ने बहार शोधतो होय, ते फरी याद करीने सुवर्णने पोतानी
मूठीमां ज देखे के अरे, आ रह्युं सोनुं, मारी मूठीमां ज छे! तेम अनादि अज्ञानथी जीव
पोताना परमेश्वर–आत्माने भूली गयो हतो, पण श्री गुरुना वीतरागी उपदेशथी
वारंवार समजाववामां आवतां तेने पोतानी प्रभुतानुं भान थयुं, सावधान थईने
पोतामां ज पोतानी प्रभुताने जाणी के अहो, अनंतशक्तिनी परमेश्वरता तो मारामां ज
छे, मारामां ज मारी प्रभुता छे; परद्रव्य अंशमात्र मारुं नथी, मारा भिन्न स्वरूपना
अनुभवथी हुं प्रतापवंत छुं,–आम पोतानी प्रभुताने जाणी, तेनुं श्रद्धान करीने तथा
तेमां तन्मयपणे लीन थईने सम्यक् प्रकारे आत्माराम थयो.....पोते पोताने
अनंतशक्तिसंपन्न ज्ञायकस्वभावरूपे अनुभवतो थको प्रसिद्ध थयो. मोहनो नाश थईने
ज्ञानप्रकाश प्रगट थयो.
जुओ, आनुं नाम ज्ञानदशा; आनुं नाम अनुभवदशा; आवी दशा थतां पोताने
पोतानो अनुभव थाय ने पोताने तेना आनंदनी खबर पडे. अहा! परमेश्वरना ज्यां
भेटा थया–ए दशानी शी वात! ज्ञानसमुद्र भगवान आत्मा प्रगट थयो– ते कहे छे के
अहो, बधा जीवो आवा आत्माने अनुभवो; बधा जीवो आत्माना शांतरसमां मग्न
थाओ. शांतरसनो समुद्र पोतामां उल्लस्यो छे, त्यां कहे छे के बधाय जीवो आ
शांतरसना दरियामां तरबोळ थाओ.
जुओ, तो खरा, सन्तोने आत्मानी प्रभुतानो केटलो प्रेम छे? आत्मा तो
अनंत गुण–रत्नोथी भरेलो मोटो रत्नाकर छे. दरियाने रत्नाकर कहेवाय छे. आत्मा
अनंतगुणथी भरेलो दरियो चैतन्य–रत्नाकर छे; एमां एटला रत्नो भर्यां छे के एकेक
गुणना क्रमथी एनुं कथन करतां कदी पूरुं न थाय. आत्मा चैतन्यरत्नाकर तो सौथी महान छे.
रत्न: सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ए मोक्षमार्गनां त्रण रत्नो छे.
महारत्न: ए रत्नत्रयना फळमां केवळज्ञानादि चतुष्टय प्रगटे छे, ते
केवळज्ञानादि महा रत्नो छे.
महानथी पण महान रत्न: ज्ञानादि एकेक गुणमां अनंता केवळज्ञानरत्नोनी
खाणभरी छे, तेथी ते महा–महारत्न छे.