Atmadharma magazine - Ank 277
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : कारतक : २४९३
महा–महा–महारत्न: एवा अनंत गुणरत्नोनी खाण आत्मा ए तो महा–महा–
महारत्न छे. एना महिमानी शी वात!
भाई! आवुं महिमावंत रत्न तुं पोते छो. महान रत्नोनी खाण तारामां भरेली
छे. ए सिवाय परचीज तारामां नथी; ए चीज तारी नथी, मफतनी परनी चिंता तें
तारे गळे वळगाडी छे. खरेखर जे तारुं होय ते ताराथी कदी जुदुं न पडे; ने ताराथी
जुदुं पडे ते खरेखर तारुं होय नहि. शुं ज्ञान आत्माथी कदी जुदुं पडशे? –ना; केमके ते
आत्माथी जुदुं नथी, ते तो आत्मा ज छे. शरीरादि आत्माना नथी, एटले ते आत्माथी
छूटा पडी जाय छे. पहेलेथी ज छूटा हता तेथी छूटा पड्या, एकमेक थई गया होत तो
छूटा न पडत. ए ज रीते ज्ञान ने राग पण एकमेक थई गया नथी. भिन्नस्वरूपे ज
रह्या छे तेथी भिन्न पडी जाय छे. प्रज्ञाछीणीवडे राग तो आत्माथी बहार नीकळी जाय
छे ने ज्ञान अंतरमां एकमेक रही जाय छे. –आवुं भेदज्ञान करे तो आत्मानी साची
प्रभुता ओळखाय.
अहो, परमेश्वर–तीर्थंकर परमात्मानी दिव्य वाणीमां पण जेनो महिमा पूरो न
पडे, एवो चैतन्य हीरलो तुं! तारा एकेक पासामां (एकेक गुणमां) अनंती ताकात
झळके; एवा अनंता पासाथी झळकती तारी प्रभुता! अनंत शक्तिना वैभवथी भरेल
आनंदनुं धाम एवो भगवान तुं पोते! पण तारी नजरनी आळसे तुं तने देखातो
नथी. ‘हरि’ तुं पोते, पोते पोताथी जराय वेगळो नथी–दूर नथी, छतां तेना भान
वगर अनंतकाळ गाळ्‌यो. भाई, हवे तो जाग! जागीने तारामां जो! अंदरमां नजर
करतां ज ‘मेरो प्रभु नहीं दूर देशांतर, मोहिमें है, मोहे सुझत नीके’ –एम तारामां ज
तने तारी प्रभुता देखाशे. ज्ञानस्वरूपमां द्रष्टि करतां आत्मा हाथमां आवे छे; तेनो
अनुभव थाय छे. ते अनुभवमां उल्लसती शक्तिओनुं आ वर्णन छे. अनुभवमां तो
अनंतशक्तिओ समाय छे, पण कथनमां अनंत न आवे, कथनमां तो थोडीक ज आवे.
छतां एकेक शक्ति अनंतशक्तिनी गंभीरताने लेती आवे छे; एकेक शक्तिना वर्णनमां
अनंत शक्तिनी गंभीरता भरी छे.
जेम दिवाळीना दिवसे आंगणमां रंगोळी पूरीने आंगणुं शोभावे छे, ने
दीवा प्रगटावे छे, –तेम तारा चैतन्य–आंगणामां रत्नत्रयनी रंगोळी पूरीने
आत्माने शोभाव...ने केवळज्ञान–दीपक प्रगटाव.