Atmadharma magazine - Ank 277
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 13 of 46

background image
: कारतक : २४९३ आत्मधर्म : ९ :
सम्यग्दशन
(समयसार कलश ६ उपरना प्रवचनमांथी)
बहु ऊंची छतां अंतर्मुहूर्तमां समजी शकाय तेवी वात
अहीं सम्यग्दर्शन केवा शुद्धआत्माने देखे छे तेनुं वर्णन छे; परथी भिन्न केवा
शुद्धात्माने देखतां सम्यग्दर्शन थाय तेनी आ वात छे.
अनादिथी परने ज जोवानी टेव पडी गई छे, ने परने जाणतां तेमां ज ज्ञानने
एकमेक मानी रह्यो छे, परथी भिन्न ज्ञानने देखतो नथी, जाणतो नथी. परथी भिन्न एकरूप
निजात्माने देखवो जाणवो ने आनंदसहित अनुभववो ते सम्यक् दर्शन छे. आत्मा पोताना
स्वभावथी परिपूर्ण छे. वर्तमानदशाने ते पूर्ण स्वभावमां वाळीने तेनो अनुभव करवो,
एटले देखनारो पोते देखनारमां देखे, पोते पोताने पोतामां देखे आवी अंतरनी द्रष्टि ते
सम्यक्–दर्शन छे.
आत्मा परथी जुदो छे, तेने जुदो देखवो ते सम्यग्दर्शन छे. भाई, आ देहादि तो जुदा
छे. देहमां कांई आत्मा नथी. देहनुं अस्तित्व आत्माना अस्तित्वथी जुदुं छे; ने आत्मानुं
अस्तित्व देहना अस्तित्वथी जुदुं छे. एकमां बीजानुं अस्तित्व नथी, एटले अत्यंत भिन्नता
छे. आवो भिन्न आत्मा पोताना ज्ञान–आनंद वगेरे अनंत गंभीर स्वभावोथी भरेलो पूर्ण
छे. स्वसन्मुख थई एने वेदवो अनुभववो जाणवो ते धर्मनी प्रथम भूमिका छे, अहींथी धर्म
शरू थाय छे. अंतरमां आनंदनुं स्वसंवेदन थतां आवो ज आखो आत्मा आनंदथी भरपूर
छे–एवी प्रतीत थाय छे, ते सम्यग्दर्शन छे.
आत्मानुं अस्तित्व केवुं छे? के परथी जुदुं ने पोताना समस्त शुद्ध गुण–पर्यायोथी
व्याप्त छे. गुणपर्यायमां व्यापेलो होवा छतां शुद्धनयथी आत्माने एकपणुं छे; तेमां कोई भेद
नथी, विकल्प नथी, अशुद्धता नथी.
भाई, तारामां जे भर्युं छे तेने तुं देख. जे तारामां नथी तेने तुं देखे छे ने तेनुंं
अस्तित्व पोतामां माने छे ते तो भ्रम छे. तारा अस्तित्वने परथी भिन्न अने पोताना
गुण–पर्यायोमां एकाकारपणे रहेला एवा एकरूपे देख, ते सम्यग्दर्शन छे. ते सम्यग्दर्शनपर्याय
अंतर्मुख थईने आखा शुद्ध आत्माने अंगीकार करे छे. आखा द्रव्य प्रमाणे सम्यग्दर्शननी
पर्याय अभेद परिणमी गई छे. सम्यग्दर्शनपर्याये आखा आत्माने पकडयो छे; ते पर्याय
अखंड द्रव्यमां अभेद थईने प्रणमी गई छे. आवो शुद्धआत्मा एक ज अमने अनुभवमां
प्राप्त हो. नवतत्त्वमांथी आ एक ज भूतार्थ छे; बाकी नवतत्त्वना विकल्पो ते सम्यग्दर्शनथी
बाह्य छे. सम्यग्दर्शननुं अंर्त–तत्त्व एकरूप शुद्ध