Atmadharma magazine - Ank 277
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : कारतक : २४९३
पूर्ण करीने तेओ उत्कृष्ट समाधिरूप वीतरागभावने पाम्या; ने उपशान्तमोह नामना
११ मा गुणस्थाने प्राण छोडीने सर्वार्थसिद्धिमां अहमिन्द्र पदने पाम्या.
[सर्वार्थसिद्धिमां ३३ सागरोपमना असंख्याता वर्षो सुधी ईन्द्रियविषयो
वगरनुं जे सुख तेमणे भोगव्युं तेनुं हवे वर्णन करीने, तेना उदाहरणथी
आत्माना अतीन्द्रिय सुखनुं स्वरूप समजावशे, ने बाह्यविषयो सुखनुं कारण नथी
एम बतावशे.
]
लोकना अग्रभागरूप जे सिद्धोनुं धाम तेनाथी ए सर्वार्थसिद्धिविमान मात्र
बार योजन नीचे छे. आ सर्वार्थसिद्धिना अंतिम अवतारमां बिराजमान आपणा
चरित्रनायक अहींथी च्यवीने आपणा भरतक्षेत्रनी अयोध्यापुरीमां ऋषभदेव
तीर्थंकर तरीके अवतरशे ने मोक्षमार्ग खुल्लो मुकीने जगतना जीवोनुं
कल्याण करशे.
भ...ज...न
जीव तुं भ्रमत सदीव अकेला; संग–साथी कोई नहि तेरा... जीव!
अपना सुखदुःख आपहीं भुगते होय कुटुंब न भेला...
स्वार्थ भये सब बिछुर जात है विघट जात ज्यों मेला... जीव!
रक्षक कोई न पूरण है जब आयु–अंतकी वेला...
फूटत पाळी बंधत नहीं जैसे दुद्धर जलका ढेला... जीव.
तन धन जोबन विनशी जात ज्यों ईन्द्रजालका खेला...
‘भागचंद’ ईमि लखि करी भाई, हो सतगुरुका चेला... जीव तुं.