Atmadharma magazine - Ank 277
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४९३ आत्मधर्म : २१ :
आत्मानो एवो निरालंबी स्वभाव छे.
हितोपदेशक गुरुओनो हितकर उपदेश सांभळीने पण ज्यांसुधी जीव पोते परालंबन
छोडीने स्वसन्मुख थईने आत्मज्ञान न करे अने कषायपरिणति पोते न छोडे एटले के पोते
पोताना उद्धारनो प्रयत्न करे नहि त्यांसुधी अज्ञानभावने लीधे जीव संसारमां ज रखडे छे; ते
पोते अज्ञानथी पोताने संसारमां दोरी जाय छे, कर्म तेने रखडावतुं नथी. अने ज्यारे ते पोते
स्वभावनी रुचि करीने जाग्यो ने अंतर्मुख थईने आत्माने जाण्यो त्यारे ते पोते पोताने मोक्ष
तरफ लई जाय छे. गुरुए तो उपदेश आप्यो के ‘तुं तारा स्वभावसन्मुख था, तेमां ज तारुं हित
छे’–पण स्वसन्मुख थवानुं तो पोताना हाथमां छे; पोते स्वसन्मुख थईने मोक्षमार्गे परिणम्यो
त्यारे व्यवहारे एम कहेवाय के श्रीगुरु मोक्षमार्गे दोरीगया.–ए निमित्तथी कथन छे.
श्री प्रवचनसार गा. ८०–८२ मां आचार्यदेवे अलौकिक घणी सरस वात करी छे. त्यां
कहे छे के–
जो जाणदि अरहंत दव्वत्त गुणत्त पज्जयत्तेहि।
सो जाणदि अप्पाणं मोहो खलु जादि तस्स लयं।
जे जाणतो अर्हंतने गुण–द्रव्य ने पर्ययपणे,
ते जीव जाणे आत्मने तसु मोह पामे लय खरे.
भगवान अरिहंतदेवनो आत्मा द्रव्यथी गुणथी ने पर्यायथी शुद्ध छे; एने जाणतां ‘हुं
पण आवो ज शुद्धस्वरूपी छुं’ एम पोताना आत्माना शुद्धस्वरूपनुं भान थाय छे एटले के
सम्यग्दर्शन थाय छे ने मोहनो नाश थाय छे.
जुओ, आमां पण स्वसन्मुख थईने पोताना आत्माने ओळख्यो त्यारे अरिहंतदेवनी
खरी ओळखाण थई.
त्यारपछी ८२ मी गाथामां स्वाश्रित मोक्षमार्गना प्रमोदपूर्वक आचार्यदेव कहे छे के–
सव्वेवि य अरहंता तेण विहाणेण खविद कम्मंसा।
किच्चा तथोवदेसं णिव्वादा ते णमो तेसि।।
अर्हंत सौ कर्मोतणो करी नाश ए ज विधि वडे,
उपदेश पण एमज करी, निर्वृत थया, नमुं तेमने.
जुओ, आ भगवाननो उपदेश!! स्वसन्मुख थईने पुरुषार्थ करवानो भगवाननो
उपदेश छे. अहो, भगवंतो! आप स्वाश्रयना पुरुषार्थ वडे मुक्ति पाम्या अने दिव्यध्वनिमां पण
आपे स्वाश्रयना पुरुषार्थनो ज उपदेश कर्यो छे. अहो, नाथ! स्वाश्रयनो आपनो उपदेश अमने
मळ्‌यो, आपने नमस्कार हो! आपना मार्गे अमे पण चाल्या आवीए छीए.
परमार्थे तो आत्मा पोते पोताना स्वाश्रयथी ज मुक्ति पामे छे तेथी पोते ज पोतानो
देव ने पोते ज पोतानो गुरु छे, अने जेमणे स्वाश्रयनो उपदेश आप्यो एवा सर्वज्ञदेव तथा
ज्ञानीगुरुओ ते व्यवहारथी देवगुरु छे, एटले तेमना प्रत्ये विनयबहुमान करे छे. आ रीते
स्वाश्रयनो प्रयत्न करनार जीव निमित्तरूप देव–गुरु वगेरेनो पण जेम छे तेम विवेक करे छे.
परंतु बंधमां के मोक्षमां आत्मा पोते ज पोताने परिणमावे छे, बीजो कोई तेना बंध–मोक्षनो
कर्ता नथी. (७प)