Atmadharma magazine - Ank 277
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 28 of 46

background image
: २४ : आत्मधर्म : कारतक : २४९३
अधिक गुणवाळा श्रमणना संगमां नित्य वसो. समानगुणवाळाना
संगथी गुणनी रक्षा थाय छे ने अधिकगुणवाळाना संगथी गुणनी
वृद्धि थाय छे. (आ वात बधा मुमुक्षुने लागु पडे छे.)
(प) सत्पुरुषनी प्रसन्नता
श्रीमद् राजचंद्रजी जगत करतां सत्पुरुषनो विशेष महिमा
बतावतां कहे छे के–
देव–देवीनी तुषमानताने शुं करीशुं?
जगतनी तुषमानताने शुं करीशुं?
तुषमानता सत्पुरुषनी ईच्छो.
(६) आत्मज्ञसंतोनी उपासना
जीवे आत्मानुं शुद्ध एकत्वस्वरूप कदी जाण्युं नथी, अने
ते एकत्वस्वरूपने अनुभवनारा आत्मज्ञसन्तनी उपासना
कदी करी नथी. जो आत्मज्ञपुरुषने ओळखीने तेनी उपासना
करे तो पोताने पण एकत्वस्वरूपनी अनुभूति थाय ज.
एकत्वस्वभावना अतीन्द्रिय आनंदना प्रचुर संवेदनरूप
आत्मवैभव जेमने प्रगट्यो छे एवा संतो आत्मानुं
एकत्वस्वरूप देखाडे छे, तेने ओळखतां आत्मवैभव प्रगटे छे.
आत्मज्ञसंतनी उपासना करे अने आत्मवैभव न प्रगटे एम
बने नहि.
(७) गुणनी अनुमोदना
गुणीजननुं अनुमोदन करनार आगळ वधे छे; ईर्षा
करनार अटकी जाय छे.
*
गुणनी जेणे ईर्षा करी तेने दोष वहाला लाग्या,
एटले ते तो दोषमां अटकी जशे.
* गुणनी जेणे अनुमोदना करी तेने गुण वहाला लाग्या,
एटले ते दोषथी पाछो फरीने गुणमां आगळ वधे छे.