: २८ : आत्मधर्म : कारतक : २४९३
(वांचकोना विचारने रजु करतो सौनो प्रिय विभाग)
“छोटे बच्चोंको शिक्षा (धार्मिक शिक्षण) देनेके लिये यह नीति बडी अच्छी है”–
बालविभागने माटे आ प्रशस्त उद्गार श्री. दीपचंदजी शेठीयाजीना छे. तेओ हमणां सोनगढ
आव्या हता. तेमना पौत्री प्रतिभाबेन बालविभागना सभ्य छे ने खूब उत्साहथी भाग
लई रह्या छे.
* पूर जोशे आगळ वधता आनंदकारी बालविभागमां मने घणो ज रस अने
जाणवानी जिज्ञासा छे. माटे सभ्यमां मारुं नाम दाखल करशो.
* भावनगरथी एक बहेन लखे छे के हुं कोलेजमां भणुं छुं परंतु मने
बालविभागमां बहु रस छे, अने रसपूर्वक आत्मधर्मनुं अध्ययन करुं छुं. (No 755)
* घणा सभ्यो लखे छे के आत्मधर्म वांचीने आनंद ऊछळे छे; ने हवे अमे आखुं
आत्मधर्म वांचीए छीए. दीवाळीनी भेटमां महावीर भगवाननुं पुस्तक मळ्युं ते वांचीने बहु
ज आनंद थयो. दीवाळीनी भेटमां आवुं सरस पुस्तक अमने मळ्युं तेथी घणा खुशी थया छीए.
* जेतपुरथी मुकेशकुमार जैन (No. 185)उत्साह व्यक्त करतां लांबा पत्रमां
लखे छे के आत्मधर्मना अंको वांचीने धर्म–संबंधी घणुं ज्ञान मळे छे. मारा जेवा लगभग
पंदरहजार विद्यार्थीओ होंशथी आत्मधर्म वांचीने ज्ञान मेळवे छे. गुरुदेवना प्रवचनमांथी
दशधर्मनुं स्वरूप वांचतां घणो आनंद थयो. आवी अमृतसमान वाणीनी जीवनमां घणी
अगत्यता छे.
वळी तेओ लखे छे के “भगवान ऋषभदेव जेवा महान धर्मपुरुषनी आवी सरस
कथाए वांचकोना दिल जीती लीधा छे. साथे साथे आत्मधर्ममां हमणां जे सुंदर चित्रो आवे
छे ते पण घणा बोधदायक होवाथी जोईने आनंद थाय छे. ते चित्रोवडे घणुं जाणवानुं मळे छे.
बाळकोने चित्रो जोवा बहु ज गमे छे; तेथी मारी विनंती छे के बने तेटला वधु चित्रो आपशो.”
“वांचको साथे वातचित” द्वारा पंदरसो बालमित्रोनी साथे तथा सर्वे वांचको साथे
संपर्क धरावो छो, ते आत्मधर्मनी ने बालविभागनी सफळतानुं मूळ छे, तेथी आ विभाग
अमने बहु गमे छे.
खरेखर आखुं आत्मधर्म ज ज्यां सुंदर छे त्यां तेना क्या विभागना वखाण करुं? ने
क्या विभागना न करुं?
हजारो बालमित्रोमां बचपणथी ज धर्मनां बीज रोपवानो जे प्रयत्न करी रह्या
(आटलुं लख्या पछी पत्रलेखकभाईए आत्मधर्म पाक्षिक थाय एवी भावना व्यक्त करी छे.)