Atmadharma magazine - Ank 277
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९२ आत्मधर्म : २९ :
भाईश्री, आत्मधर्मने पाक्षिक बनाववानी जरूर छे ते साची वात छे, संस्थाए पण ते
ध्येय स्वीकार्युं छे, पण तेनो अमल करवो ए संस्थाना अधिकारीओना हाथमां छे. आपणे सौ
भावना भावीए, बाकी आपना जेवा हजारो जिज्ञासुओ उत्साहभेर धार्मिक अभ्यासमां जे रस
लई रह्या छो ते ज आत्मधर्मना प्रोत्साहननुं कारण छे. अने आ बधायनुं मूळ प्रेरणा–स्थान
तो गुरुदेव छे–के जेओ आपणा जीवननुं मार्गदर्शन करीने उन्नत्तिमार्गे लई जाय छे.
प्र:– उत्तम अंगोमें गंधोदक क्यों लगाया जाता है और तिलक क्यों किया जाता है? (नं. ३१८)
उ:– गंधोदक एटले भगवानना अभिषेकनुं पाणी; तेने भक्तिपूर्वक मस्तके चडावीने
आपणे भगवाननुं बहुमान करीए छीए, अने भावना भावीए छीए के हे प्रभो! आप तो
पवित्र छो ज, ने आपना चरणोथी स्पर्शायेला आ पवित्र जळने मारा मस्तके चढावीने हुं मारा
कलंकने धोई नांखुं छुं. अने आपना दर्शनथी जाणे के मने मोक्षनुं युवराजपद मळ्‌युं होय एवा
आनंदपूर्वक हुं आ तिलक करुं छुं.
जिनमंदिरनी कोई वस्तु श्रावके लेवाय नहि; परंतु बे वस्तु लेवानी छूट: एक तो
गंधोदक अने बीजुं चंदन (तिलक माटे.)
प्र:– ध्यान क्यों और कैसे लगाया जाता है?
उ:– ध्यान आत्माके आनंदके लिये किया जाता है; अने आखा जगतथी विमुख थईने ने
निजस्वभावनी सन्मुख थईने ध्यान थाय छे. विशेष स्पष्टताके लिये बाहुबली भगवानको
थोडी देर तक देखलो!
सात वर्षना एक सभ्य पूछे छे के मेरेको अभी सम्यग्दर्शन हो सकता है क्या? भैया!
धर्मकाळ वखते तो आ भरतभूमिमां आराधक जीवो अवतरता; ने तमारा करतांय नानी
उंमरमां सम्यग्दर्शनसहित पा–पा पगली मांडीने आ पृथ्वीने पावन करता हता. आ भवमां
सम्यक्त्वनी अखंड आराधना प्राप्त करशो तो भविष्यना भवमां सम्यक्त्व माटे तमारे ८ वर्षना
थवानी राह जोवी नहि पडे. अत्यारे तो जराक धीरज राखीने धर्मात्मानी सेवा करो.
प्र:– सुखी केम थवाय?
उ:– आपणा आत्मामां सुख भर्युं छे, तेने ओळखवाथी सुखी थवाय.
प्र:– आत्माने कई रीते ओळखवो?
उ:– ज्ञानीना सत्संगे भेदज्ञानना उग्र अभ्यास वडे ने साची आत्मलगनी वडे आत्मा
ओळखाय.
बंधुओ,
बालविभागना सभ्यने तेना जन्मदिवसे बालविभाग तरफथी एक अभिनंदनकार्ड
तथा नानकडी भेटरूपे एक फोटो मोकलीए छीए. पण केटलाक सभ्योना जन्मदिवसनी नोंध
अमारी पासे नथी, तो सभ्यनंबर सहित आपनो जन्मदिवस लखी मोकलशो. गुजराती तिथि
प्रमाणे लखी शकाय तो सारुं, ने तिथि न मळे तो तारीख लखवी. साथे पूरुं सरनामुं लखवुं.